पराशर :
पुत्रों की मृत्यु व वंश के क्षय से व्यथित मैत्रावरूण वसिष्ठ घर से निकल पड़े। इनकी पुत्र वधु शक्ति की विधवा पत्नी अदृश्यवन्ती रोती हुई उनके पीछे चल पड़ी। उसके गर्भ से वेद ध्वनि सुन वसिष्ठ आनन्दित हुए कि उनका वंश जीवित है। सात पुत्रों की मृत्यु से दुखी बूढ़े वसिष्ठ को इस बच्चे का सहारा मिला। उन्होंने इसका नाम पराशर रखा और इसका पालन-पोषण किया। बच्चे को पिता या पितामह के भेद का पता नहीं था। अतः वह उन्हें पिता ही समझता।
पराशर के बड़े होने पर माँ ने उसे राक्षसों द्वारा शक्ति वघ की कथा सुनाई। राक्षसों के प्रति ऋषि वसिष्ठ भी क्रुद्ध थे। पराशर ने राक्षसों को समाप्त करने के लिए प्रचण्ड राक्षस-यज्ञ आरम्भ किया। इससे ऋषियों में हलचल मंच गई। पुलह, पुलस्त्य, क्रतु महाक्रतु ने पराशर को समझाने का यत्न किया। उन्होंने वसिष्ठ को भी यज्ञ बंन्द करने के लिए प्रेरित किया वसिष्ठ के कहने पर पराशर ने यज्ञ स्थगित कर दिया। पुलस्त्य ने प्रसन्न हो कर वर दिया कि वह शास्त्रों में पारंगत व पुराणों का वक्ता बनेगा। राक्षस सत्र के लिए सिद्ध की गई अग्नि हिमालय के उत्तर में स्थित एक अरण्य में झोंक दी गई।
पार्जीटर के अनुसार वसिष्ठ के वंशज दो पराशर हुए हैं। प्रथम पराशर इक्ष्वाकु वंश के राजा निषध के समकालीन थे व शाक्त्य कहलाते थे। इन्होंने राक्षस यज्ञ का आयोजन किया था। दूसरे पराशर सगर वसिष्ठ के पुत्र होने के कारण पराशर सागर कहलाते थे, जिनको सत्यवती से पुत्र व्यास हुआ। यह पराशर निषध से लगभग बीस पीढ़ी बाद हुए राजाओं प्रसुश्रुत व सुसंधि के समकालीन थे। पराशर को शस्त्र अस्त्रों का प्रशिक्षण देने वाले उसके चाचा शतयातु थे। ऋग्वेद में वसिष्ठ व पराशर के साथ शतयातु का भी उल्लेख हैं। वेदों के विश्लेषक व सम्पादक को वेद व्यास की उपाधि दी जाती थी। यह उपाधि 32 ऋषियों को प्राप्त हुई थी। इनमें पराशर भी एक थे। ऋषि पराशर को मंत्रद्रष्टा, स्मृतिकार, आयुर्वेद व ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक माना जाता था। इनके नाम से निम्न ग्रंथ उपलब्ध हैं :
ऋषि पराशर 18 स्मृतिकारों में एक थे। ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक 18 ऋषियों में पराशर प्रमुख थे। वे ऋषि हैं सूर्य, पितामह, व्यास, वसिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पौलिश, च्यवन, यवन, भृगु, और शौनक।
पराशर स्मृति : इसमें बारह अध्याय व 592 श्लोक हैं। कलियुग में धर्म की रक्षा के लिए इसकी रचना की गई थी। मनुस्मृति, गौतम स्मृति व शंख स्मृति से पराशर स्मृति अधिक प्रगतिशील है। इसके अनुसार ब्राह्मणों को शूद्र के हाथ का भोजन वर्जित नहीं है। स्त्रियों को पुनर्विवाह की अनुमति है, तथा आपातकाल व प्रवास में धार्मिक नियमों में बंधे रहने की आवश्यकता नहीं।
पराशर नीति : चाणक्य ने अपने ग्रन्थ अर्थशास्त्र में इस ग्रन्थ से उदाहरण दिए हैं। ज्योतिष शास्त्र पर भी पराशर के नाम से अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हैं, यथा-पराशर संहिता, बृहत पराशर होरा शास्त्र और लघु पराशरी, ज्योतिष शास्त्र में मैत्रेय व कौशिक इनके शिष्य प्रसिद्ध थे।
ऋषि पराशर ने चिकित्सा पर भी कई ग्रन्थ लिखे हैं, जिनमें पराशर तंत्र और वृद्ध पराशर मनुष्यों की चिकित्सा पर है। हस्ति आयुर्वेद हाथियों के इलाज का गौ लक्षण, गौओं के रोगों, पर तथा वृक्षायुर्वेद पेड़-पौधों के रोगों पर है।
पराशर पुराण व इतिहास के भी आचार्य थे। माध्व आचार्य ने ‘पराशर उपपुराण” ग्रंथ का उल्लेख किया है। इनके द्वारा रचित “पराशर गीता” में जनक को उपदेश दिया गया है। यही उपदेश भीष्म ने युधिष्ठर को दिया था। इनके द्वारा रचे गए “सावित्री मंत्र” का वर्णन भी महाभारत में आता है। इनके अतिरिक्त पराशर वास्तु शास्त्र”, “केवल सार” तथा विमान विद्याधर “पराशर्य कल्प उपलब्ध है।
पराशर वंश की छः उप-शाखाएँ उपलब्ध है- गौर पराशर, नील पराशर, कृष्ण पराशर, श्वेत पराशर, श्याम पराशर, व धूम्र पराशर ।
1. गौर पराशर के प्रमुख कुल है कांडशय या कांडूशय, गोपालि, जैहयप, भीमतापन (समतापन) वाहनप अथवा वाहयौज
2. नील पराशर के प्रमुख वंश केतु जातेय, खातेय, प्रदोहय, वाहचमय, हर्यश्चि हैं।
3. कृष्ण पराशर के वंश काकेयस्थ या कार्केय, कार्ष्णायन, और पुष्कर हैं।
श्वेत पराशर के वंश
कपिमुख या कपि श्वस् जपातय अथवा ख्यातपायन,
इषीकहस्त उपय, बालेय,
क्रोधनायन, क्षैमि, बादरि
6. धूम्र पराशर के प्रमुख कुल तैलेय, यूथय, और एवार्ष्णायन ।
खल्यापन, तंति,
एक पराशर ऋग्वेदी श्रुतर्षि ऋषिक एवं ब्रह्मचारी हुए हैं। वे व्यास की ऋक शिष्य परम्परा में से वाष्कल ऋषि के शिष्य थे। इनके नाम से ही उस शाखा को पाराशरी शाखा नाम प्राप्त हुआ।
श्राविष्ठायन, स्वायष्ट
5. श्याम पराशर के वंश वाटिका, स्तंब हैं।
वायु और ब्राह्माण्ड पुराणों के अनुसार व्यास की साम शिष्य परम्परा में हिरण्यनाम ऋषि का शिष्य पराशर हुआ। ‘ब्रह्माण्ड’ में इसके नाम के लिए पराशर्य पाठ भेद है। पराशर को कुथुर्मि ऋषि का शिष्य भी कहा गया है। यह साम शिष्य परम्परा में था।
एक अन्य पराशर ऋषभ नामक शिव अवतार का शिष्य हुआ है। एक पराशर सागर हुए हैं जो सगर पराशर के पुत्र थे। यह वैदिक कालीन आचार्य थे। इसने इकासठ श्लोकों से युक्त पाराशरी शिक्षा लिखी है। गौर पराशर वंश के वसिष्ठ, मैत्रा वरुण व कुण्डिन तीन प्रवर है। शेष पाँच शाखाओं के प्रवर वसिष्ठ, शक्ति व पराशर हैं। श्वेत पराशर शाखा के प्रमुख कुलों में एक कुल का नाम बालेय हैं। सम्भवतः बालेय से ही उपजाति बाली विकसित हुई है। यह मोहयाल ब्राह्मणों की एक उपजाति है।
English Translation.
Parashara: Distressed by the death of his sons and the destruction of his dynasty, Maitravaruna Vasishtha left the house. The widowed wife of his son’s bride Shakti, Avidhyawanti, followed him crying. Hearing the sound of Vedas from her womb, Vasishtha rejoiced that his progeny was alive. Saddened by the death of seven sons, old Vasistha got the support of this child. He named it Parashar and nurtured it. The child did not know the difference between father and grandfather. That’s why he considered him as his father. When Parashar grew up, the mother told him the story of Shakti Vagh by the demons. Sage Vasishtha was also angry with the demons. Parashara started a fierce demon-sacrifice to end the demons. Due to this there was a stir among the sages. Pulah, Pulastya, Kratu Mahakratu tried to convince Parashara. He also inspired Vasishtha to stop the yagya. On Vasishtha’s request, Parashar postponed the yagya. Pulastya was pleased and gave a boon that he would become an expert in scriptures and a speaker of Puranas. The fire that had been proven for the demon session was thrown into a forest located in the north of the Himalayas. According to Pargiter, there were two Parasharas, descendants of Vasishtha. The first Parashara was a contemporary of King Nishadha of Ikshvaku dynasty and was called Shaktya. He had organized the Rakshasa Yagya. Second Parashara Sagar was called Parashara Sagar because of being the son of Vasishtha, who had a son Vyas from Satyavati. This Parashara was a contemporary of kings Prasushrut and Susandhi, about twenty generations later than Nishad. Parashara’s uncle Satyatu was the one who trained him in weapons. Along with Vasistha and Parashara, there is mention of Shatayatu in Rigveda. The analyst and editor of the Vedas was given the title of Ved Vyas. This title was received by 32 sages. Parashar was also one among them. Sage Parashar was considered to be a spell caster, memory maker, originator of Ayurveda and astrology. The following books are available on his name: Sage Parashara was one of the 18 Smritikars. Parashar was the chief among the 18 sages, who were the originators of astrology. Those sages are Surya, Pitamah, Vyasa, Vasistha, Atri, Parashara, Kashyapa, Narada, Garga, Marichi, Manu, Angira, Lomash, Paulish, Chyavana, Yavana, Bhrigu, and Shaunaka. Parashar Smriti: It has twelve chapters and 592 verses. It was created to protect Dharma in Kali Yuga. Parashar Smriti is more progressive than Manusmriti, Gautam Smriti and Shankh Smriti. According to this, Brahmins are not forbidden to eat food from the hands of Shudra. Women are allowed to remarry, and there is no need to be bound by religious rules during emergency and migration. Parashar Policy: Chanakya has given examples from this book in his book Arthashastra. Many texts are also available on astrology on the name of Parashara, such as Parashara Samhita, Brihat Parashara, Hora Shastra and Laghu Parashari, Maitreya and Kaushik were famous disciples in astrology. Sage Parashara has also written several treatises on medicine, including Parashara Tantra and Vriddha Parashara on the healing of humans. Hasti Ayurveda deals with the treatment of elephants, diseases of cows, and Vrikshayurveda deals with diseases of trees and plants. Parashar was also a teacher of Purana and Itihaas. Madhva Acharya has mentioned the book “Parashara Upapurana”. Janak has been preached in “Parashar Gita” composed by him. The same advice was given by Bhishma to Yudhishthira. The description of “Savitri Mantra” composed by him also comes in Mahabharata. Apart from these, Parashara Vastu Shastra”, “Keval Saar” and Viman Vidyadhar “Parasharya Kalpa” are available. Six sub-branches of the Parashara dynasty are available – Gaur Parashara, Neel Parashara, Krishna Parashara, Shweta Parashara, Shyam Parashara, and Dhumra Parashara. 1. The main clans of Gaur Parashar are Kandshay or Kandushay, Gopali, Jaihyap, Bhimtapan (Samatapan), Vahanap or Vahayoj. 2. The main clans of Neel Parashar are Ketu Jateya, Khataye, Pradohya, Vahchamay, Haryaschi. 3. The descendants of Krishna Parashara are Kakeyastha or Karkeya, Karshnayana, and Pushkar. Descendants of White Parashara Kapimukh or Kapi Swas Japatay or Khyatpayan, Ishikhast Upay, Baley, Krodhanayan, Kshaimi, Badri 6. Dhumra Parashar’s chief clan Tailey, Uthaya, and Avarshnayan. A Parashar Rigvedi Shrutarshi, has become a sage and a celibate. He was a disciple of Vashkala Rishi from the Rik disciple tradition of Vyasa. By his name only that branch got the name Parashari branch. Shravishthayan, Swayasht 5. Shyam Parashar’s descendants are Vatika, Stambh.
According to the Vayu and Brahmanda Puranas, Parashara was the disciple of Hiranyanam Rishi in the Sam disciple tradition of Vyasa. In the ‘universe’ there is a Parasharya text distinction for its name. Parashara has also been called the disciple of Kuthurmi Rishi. This Sama was in the disciple tradition. Another Parashara has been a disciple of Shiva Avatar named Rishabh. There is a Parashar namely Sagar, who was the son of Parashar. He was an Acharya of Vedic period . He has written Parashari Shiksha consisting of sixty one verses. Vasistha, Maitra Varuna and Kundin are the three Pravaras of Gaur Parashar dynasty. The leaders of the remaining five branches are Vasistha, Shakti and Parashara. One of the main clans of Shvet Parashar branch is named Balayya. Presumably, the sub-caste “Bali” has evolved from Balayya. It is a sub-caste of Mohayal Brahmins.