ancient indian history

Vasishtha Lineage Continued

जातुकर्ण:
वसिष्ठ वंश में जातुकर्ण ऋषि हुआ है। इसने व्यास को वेद-पुराण की शिक्षाप्रदान की थी। इसे अठाईस द्वापरों में से एक युग का व्यास कहा गया है। इस ऋषि के वंशज जातुकर्ण्य कहलाते हैं।
आश्रम : –
मनाली (हिमाचल) से तीन किलोमीटर दूर विपाशा (व्यास) नदी के किनारे वसिष्ठ शिला नामक आश्रम है। ऋषि मैत्रावरुणि वसिष्ठ ने इस स्थान पर तपस्या की और पृथ्वी के समस्त लोगों के पुरोहित बने।
ग्रन्थ :
बसिष्ठ नाम से कई ग्रन्थ उपलब्ध है। अनुमान है कि ये ग्रन्थ किसी एक ऋषि द्वारा रचित न होकर विभिन्न ऋषियों द्वारा प्रणीत हैं। मनुस्मृति व याज्ञवल्क्य स्मृति का उल्लेख है। इस स्मृति में आचार, प्रायश्चित संस्कार, सन्यासी, आततायी आदि के लिए नियम दिए गए हैं। अन्य ग्रन्थ वृद्ध वसिष्ठ, वसिष्ठ कल्प, वसिष्ठ तन्त्र, वसिष्ठ पुराण, वसिष्ठ लिंग पुराण, वसिष्ठ शिक्षा, वसिष्ठ श्राद्ध कला, वसिष्ठ संहिता, वसिष्ठ होम प्रकार आदि हैं।

वसिष्ठ कुल में निम्न मंत्रद्रष्टा हुए हैं :- इन्द्रप्रमति कुंडिन, बृहस्पति, भरद्धसु, मैत्रा वारुणि, वसिष्ठ, शक्ति, पराशर, सुधुमन आदि ।
वसिष्ठ ऋषि के वंश में कई प्रमुख ऋषि हुए हैं जिनके नाम से उपजातियाँ बन गई हैं। यथा- आलब्ध औपलोम, कठ, कपिष्ठल, गोपायन, पालिशय पौलि, बालिशय बोधप ब्रह्मबल, याज्ञवल्क्य (याज्ञदत्त), लोमायन, बौली, शांडिली, श्रवस, श्रवण सुमन आदि। इन सबका एक प्रवर वसिष्ठ है। अनुमान है कि यह वसिष्ठ इक्ष्वाकु वंशीय राजा हिरण्यनाम कौशल्य का पुत्र वसिष्ठ कौशल्य है। उद्गाह, उपलव, कपिंजल काण्व कालशिखा, कौरव्य, कौलायन, गोपथ, पन्नगारि, बेशु, बालवय, ब्रममालिन, महाकर्ण, मातेय, वाकप, बालखिल्य, वेदशेरक, शाकायन, शैवलेय साख्यायन आदि। इनके तीन प्रवर-इन्द्रप्रमति, भागीवसु व वसिष्ठ हैं।
औपस्थल, कुंडिन, पैप्पलाद, बाल, माक्षति, लोहलय, सैबलक, स्वस्थलि आदि जातियों के भी तीन प्रवर वसिष्ठ, कुडिन व मित्रावरुणि हैं।
आलम्ब दानकेय, नागेय, परम, पादप, महावीर्य, वापन, शिवकर्ण आदि के अत्रि, जातुकर्ण व वसिष्ठ तीन प्रवर है। महाभारत और पुराणों में वसिष्ठ ऋषि की तीन वंशावलियाँ प्राप्त हैं।

1.
अरुण्धती शाखा वसिष्ठ (अरुन्धती) – शक्ति (सवागज अथवा सागर) – पराशर (काली) कृष्ण द्वैपायन (आरणी) – शुक (पीवरी) – भूरि श्रवस, प्रभु शंभु कृष्ण गौर एवं पुत्री कीर्ति मती (ब्रह्म दत्त की पत्नी)।
2.
घृताची शाखा – वसिष्ठ मैत्रावरण (घृताची) इन्द्र प्रमति अथवा कुणीति या कुशीति- वसु (पृथुसुतो) उपमन्यु । व्याघ्री शाखा वसिष्ठ को व्याघ्री से व्याघ्रपाद, मंघ बाघलोम, जावालि, मन्यु, उपमन्यु, सेतु कर्ण आदि कुल 19 toगोत्राकार पुत्र उत्पन्न हुये हैं !.

English Translation.
Jatukarna: Jatukarna became a sage, within the Vasishtha dynasty. He had taught Veda-Purana to Vyasa. Jatukarna is also called, diameter of one of the twenty-eight Dwapar eras. The descendants of this sage are known as “Jatukarnyas”.
Hermitage : – It is located at three kilometers away from Manali (Himachal) There is an ashram named as Vasishtha Shila on the banks of Vipasha (Vyas) river. Sage Maitravaruni Vasistha did penance at this place and became the priest of all the people of the earth.
Text: Many texts are available with the name Vasishtha. It is estimated that these texts were not composed by any one sage but were written by various sages. Manusmriti and Yajnavalkya Smriti are some of the texts.
In this Smriti, rules have been given for conduct, atonement rituals, sanyasis, terrorists etc. Other texts are Vriddha Vasistha, Vasistha Kalpa, Vasistha Tantra, Vasistha Purana, Vasistha Linga Purana, Vasistha Shiksha, Vasistha Shraddha Kala, Vasistha Samhita, Vasistha Home Type etc. In the Vasishtha clan, there are the following spellcasters :- Indrapramati Kundin, Brihaspati, Bharadhasu, Maitra, Varuni, Vasishtha, Shakti, Parashar, Sudhuman etc. There have been many prominent sages within the lineage of the sage Vasishtha, after whom sub-castes got evoluted/formed. Like- Alabdha Auplom, Kath, Kapishthal, Gopayan, Palishaya Pauli, Balishay Bodhap Brahmabal, Yajnavalkya (Yagyadutta), Lomayan, Bowli, Shandili, Shravas, Shravan, Suman etc. All these casts are considered “Superior Vasishthas” It is estimated that this Vasishtha is Vasishtha Kaushalya, son of Ikshvaku dynasty king Hiranyanam Kaushalya. Udgaha, Uplav, Kapinjal, Kanv, Kalashikha, Kauravya, Kaulayan, Gopath, Pannagari, Beshu, Balavaya, Brammalin, Mahakarna, Mateya, Vakap, Balkhilya, Vedsherak, Shakayan, Shaivaleya Sakhyayan etc. Vasishtha’s three pravaras are Indrapramati, Bhagivasu and Vasishtha. Aupasthal, Kundin, Pappalad, Bal, Makshati, Lohalaya, Saibalak, Swasthali etc. castes also have three pravars i.e. Vasistha, Kudin and Mitravaruni. Aalamba Dankey, Nagey, Param, Padap, Mahavirya, Vapan, Shivkarna etc. are the three pravars of Atri, Jatukarna and Vasishtha. There are three genealogies of sage Vasistha in Mahabharata and Puranas. 1. Arundhati branch Vasistha (Arundhati) – Shakti (Savagaj or Sagar) – Parashara (Kali) Krishna Dwaipayan (Arani) – Shuk (Pevari) – Bhuri Shravas, Lord Shambhu Krishna Gaur and daughter Kirti Mati (wife of Brahma Dutt). 2. Ghritachi branch – Vasishtha Maitravaran (Ghritachi) Indra Pramati or Kuniti or Kushiti – Vasu (Prithusuto) Upamanyu. Vyaghri branch Vasistha from Vyaghri to Vyaghrapada, Mangha Baghlom, Javali, Manyu, Upamanyu, Setu Karna etc. These are total 19 gotra sons.

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