भृगु कुल :
व्युत्पत्ति की दृष्टि से भृगु शब्द का अर्थ प्रकाशमान अग्नि के विद्युत रूप का यह प्रतिनिधित्व करता है।
भृगु प्रजापति:
ब्राह्मण्ड पुराण के अनुसार इनकी पत्नी ख्याति थी, जो दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। देव-दैत्य युद्ध में यह दैत्यों की पक्षपाती थी। भृगु तपस्या के लिए वन में चला गये और इनकी पत्नी देवों से युद्ध करती रही और विष्णु के हाथों मारी गई। भृगु ने संजीवनी मंत्र से पत्नी को जीवित कर दिया, और विष्णु को शाप दिया कि वह गर्भ में रह कर पृथ्वी पर अवतार धारण करेगा। अन्य कथा के अनुसार विष्णु ने भृगु को वचन दिया था कि वह उसके यज्ञ की रक्षा करेगा परन्तु यज्ञ के समय विष्णु इन्द्र के निमन्त्रण पर उसके पास चला गया। दैत्यों ने भृगु का यज्ञ नष्ट कर दिया। भृगु ने मृत्यु लोक में दस बार जन्म लेने का शाप विष्णु को दिया। स्वायंभुव मनु द्वारा किये यज्ञ के समय यह विवाद खड़ा हुआ कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से श्रेष्ठ कौन है। भृगु को यह कार्य सौंपा गया। भृगु शिव के निवास स्थान कैलाश पर गये । नन्दि ने उसे शिव से मिलने नहीं दिया, क्योंकि शिव उस समय पार्वती के साथ थे। भृगु ने शिव को शाप दिया कि उस की पूजा लिंग रूप में होगी और उसके ऊपर गिरे जल का कोई भी व्यक्ति पान नहीं करेगा। तत्पश्चात भृगु ने उसे शाप दिया कि उसका पूजन कोई भी नहीं करेगा। क्रोधित भृगु विष्णु के पास गये। उसे सोता देखकर पूरे बल से उन्होंने विष्णु के वक्ष पर टांग मारी विष्णु की नींद टूट गई। उसने भृगु को नमस्कार करके पूछा, “आपके पैर पर चोट तो नहीं आयी।” भृगु प्रसन्न हुए विष्णु को सर्वश्रेष्ठ देवता मान लिया। परिवार :
भृगु की पत्नी ख्याति से लक्ष्मी, धातृ तथा विधातृ सन्तानें हुई। लक्ष्मी ने नारायण से विवाह किया और उस और उन्माद सन्तानें हुई बल से तेज और उन्माद से संश हुए। भृगु के कई मानस पुत्र थे, जो देवों के विमान चालक धातृ की पत्नी का नाम नियति तथा विधातृ कीपत्नी का नाम आयति था। नियति को मृकंर्ड एवं आयति को प्राण नामक पुत्र हुए। मृकंड को मनस्विनी से मार्कण्डेय तथा प्राण को पुण्डरिका से द्युतिमान पुत्र हुआ। ये सभी लोग भार्गव के नाम से प्रसिद्ध हुए।
भृगु वारूणि : ब्रह्मा के आठ मानस पुत्रों में से एक थे, जिससे ब्राह्मण वंश का निर्माण हुआ। महाभारत और पुराणों के अनुसार ब्रह्मा के द्वारा किये गए यज्ञ से सर्व प्रथम भृगु उत्पन्न हुए। शिव ने वरूण रूप धारण कर इसे पुत्र रूप में प्राप्त किया। इसलिए इसका नाम भृगु वारूणि पड़ा।
सम्बन्ध भारद्वाज के साथ जगत् की उत्पत्ति तथा विभिन्न तत्वों के भृगु के संवाद का उल्लेख महाभारत में मिलता है। तैत्तिरीय उपनिषद में एक तत्वज्ञानी के नाते भृगु वारूणि का उल्लेख है।
भृगु – वारूणि की दिव्या और पुलोमा दो पत्नियों थी । दिव्या हिरण्याकश्यप की कन्या थी पुलोमा के उन्नीस पुत्र हुए। जिन में से 12 देवयोनि के और 7 ऋषि देवयोनि के हैं-भुवन, भावन, अंत्य, अंत्यामन क्रतु, शुचि, स्वमूर्धन, व्याज, वसुद, प्रभव, अव्यय एवं अधिपति सात ऋषि हैं- च्यवन, उशनस, शुक्र, वज्रशीर्ष शुचि, और्व वरेण्य एवं सवन ब्रह्माण्ड में सारे देव और ऋषि दिव्या के पुत्र कहे गए हैं। केवल व्यवन को पुलोमा का पुत्र बताया है। उशनस-शुक्र और च्यवन ये दो पुत्र महत्वपूर्ण हुए हैं। इन्हीं से आगे चलकर भृगुवंश का विस्तार हुआं इनमें से शुक्र वंश दैत्य पक्ष में शामिल होकर विनष्ट हो गया। च्यवन ऋषि के परिवार से भार्गव वंश फला-फूला।
च्यवन ऋषि के परिवार ने ब्राह्मण होकर भी क्षत्रिय कर्म स्वीकार किया। इसलिए भार्गव वंशियों को क्षत्रिय ब्राह्मण उपाधि प्राप्त हुई। आश्रमः भृगु तुंग नामक पर्वत पर भृगु का आश्रम था, जहाँ इसने तपस्या की।
ग्रन्थः भृगु–स्मृति, भृगु- गीता, इसमें वेदान्त विषयक प्रश्नों की चर्चा की गई है। भृगु संहिता, ज्योतिष शास्त्र है। भृगु–सिद्धान्त एवं भृगु-सूत्र ये प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। ऋषि पिप्पलाद :
कई ग्रन्थों में पिप्पलाद को दधीचि का पुत्र कहा है और कइयों में ऋषि याज्ञवल्क्य का इसकी माता का नाम सुवर्चा या प्रातिथेयी था। सुवर्चा इसे जन्म देकर दधीचि के शव के साथ सती हो गई। बालक की रक्षा पीपल के पेड़ पर रहने वाले पक्षियों ने की। इसलिए इसका नाम पिप्पलाद पड़ा। पिप्पलाद को बचपन में बहुत कष्ट सहने पड़े। इसके कष्टों का कारण शनि था। शनि का दुर्भाव समाप्त करने के लिए इसने घोर तप किया। सोम ने विभिन्न विद्याओं का इसे प्रशिक्षण दिया। पिप्पलवाद को ऋषि पद से सम्मानित किया गया। शनि भी इसकी शरण में आया। ऋषि पिप्पलाद ने उसे कहा, “बारह वर्ष से छोटे बच्चों को कष्ट मत दिया करो।” शनि ग्रह की शान्ति के लिए ऋषि पिप्पलाद का स्मरण किया जाता है। ऋषि पिप्पलाद का प्रथम विवाह गौतम ऋषि की कन्या से हुआ और द्वितीय राजा अनरण्य की पुत्री पद्मा से !
पद्मा से ऋषि को दस पुत्र प्राप्त हुए। इनके एक पुत्र का नाम कहोड़ था। अथर्ववेद की एक शाखा का नाम पिप्पलाद शाखा है। सम्भवतः इस शाखा के प्रर्वतक ऋषि पिप्पलाद होंगे। पिप्पलाद ऋषि के नाम से कई ग्रन्थ हैं। यथा पिप्लाद संहिता, पिप्पलाद ब्राह्मण, पिप्पलाद श्राद्ध – कल्प, प्रश्न उपनिषद में एक तत्व ज्ञानी के रूप में इस ऋषि का उल्लेख हैं। इनके पास सुकेश भारद्वाज, शैव्या सतकाम, गार्ग्य, कौसल्य, आश्वलायन, भार्गव वैदर्भी, तथा कबंधन कात्यायन, ऋषि ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के लिए आए। एक वर्ष आश्रम में ज्ञान अर्जित करने के पश्चात् उन्होंने ऋषि से प्रश्न पूछने की आज्ञा प्राप्त की। 1. कबंधन कात्यायन ने प्रश्न पूछा, “किस मूल तत्व से सृष्टि पैदा हुई है?” ऋषि ने उत्तर दिया, “प्रजापति ने अचेतन और प्राण (चेतन) के मिथुन से सृष्टि का निर्माण किया।” 2. भार्गव वैदर्भी द्वारा ऋषि से पूछा गया,” उत्पन्न सृष्टि की धारणा किन देवताओं द्वारा होती है।” उत्तर प्राप्त हुआ।” प्राण देवता द्वारा सृष्टि की धारणा होती है। कौसल्य आश्वलायन का प्रश्न था “प्राण की उत्पत्ति कैसे 3. होती है?” उत्तर “आत्मा से।” 4. सौर्यायनि गार्ग्य, “स्वप्न में जाग्रत तथा निद्रित कौन रहता है? उत्तर, “निद्रा में आत्मा जाग्रत रहती है। शेष सभी निद्रा में विलीन हो जाते हैं। 5. शैव्या सतकाम का प्रश्न, “प्रणव का ध्यान करने से मानव की इच्छा कहां तक सफल होती है?” उत्तर “सदैव प्रणव का ध्यान करने वाला मनुष्य आत्म ज्ञान प्राप्त कर अमरता को प्राप्त करता है।” सुकेश भारद्वाज, “षोडष कला पुरुष (परमात्मा) का रूप क्या है?” उत्तर- “वह प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में निवास करता है। इसीलिए वह सर्व व्यापी है। बहती गंगा जिस प्रकार सागर में लीन हो जाती है, उसी प्रकार समस्त सृष्टि उसी में विलीन हो जाती है केवल पुरुष (परमात्मा) शेष रहता है। इस ज्ञान की प्राप्ति पर मानव को अमरता प्राप्त होती है। जिस स्थान पर ऋषि दधीचि ने देह त्यागी थी वहां काम धेनु ने दुग्ध की धारा छोड़ी। वह स्थान “दुग्धेश्वर तीर्थ” कहलाया। नर्मदा तट पर पिप्पलाद ऋषिने तपस्या की वह पिप्लाद तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। एक पिप्पलाद ऋषि परीक्षित राजा के पास भी आया था। वह दधीचि सुत पिप्पलाद ऋषि का वंशज हो सकता है, क्योंकि ऋषि दधीचि परीक्षित राजा से बहुत पहले हुआ है। एक पिप्पलाद ऋषि व्यास की अथर्वन, शिष्य परम्परा में था वह अथर्ववेद का संकलन कर्ता हुआ हैं और देव दर्शन या वेद स्पर्श का शिष्य था। ऋषि पिप्पलाद द्वारा रचित पिप्पलाद संहिता (अथर्ववेद की) में बीस काण्ड हैं। उस संहिता का प्रथम छन्द “शन्नोदेवी” हैं। पंतजलि के व्याकरण महाभाष्य में इस मंत्र का उदाहरण दिया है।
English Translation
Bhrigu clan: Etymologically, the meaning of the word Bhrigu is the representation of the electric form of the luminous fire.
Bhrigu Prajapati: According to Brahmand Purana, his wife was Khyati, who was the daughter of Daksha Prajapati. In the Dev-Demon war, it was biased towards the demons. Bhrigu went to the forest for penance and his wife kept fighting with the Devas and was killed by Vishnu. Bhrigu brought the wife back to life with the Sanjeevani mantra, and cursed Vishnu that he would incarnate on earth, while in the womb. According to another story, Vishnu had promised Bhrigu that he would protect his Yagya, but at the time of Yagya, Vishnu went to him on the invitation of Indra. The demons destroyed the sacrifice of Bhrigu. Bhrigu cursed Vishnu to be born ten times on the land of death. At the time of Yajna performed by Swayambhuva Manu, a dispute arose as to who is the best among Brahma, Vishnu and Mahesh. This task was assigned to Bhrigu. Bhrigu went to Kailash, the abode of Shiva. Nandi did not allow her to meet Shiva, as Shiva was with Parvati at that time. Bhrigu cursed Shiva that he would be worshiped in the form of a linga and no one would drink the water that fell on him. After that Bhrigu cursed him that no one would worship him. Angry Bhrigu went to Vishnu. Seeing him sleeping, he hanged Vishnu’s chest with full force, Vishnu’s sleep was broken. He greeted Bhrigu and asked, “Is your leg hurt?” Bhrigu was pleased and accepted Vishnu as the best deity. Family : Lakshmi, Dhatri and Vidhatri were the children of Bhrigu’s wife Khyati. Lakshmi married Narayan and bore him more frenzied children, stronger than force and doubter than frenzy. Bhrigu had many Manas sons, the name of Dhatri’s wife’s name was Niyati and Vidhatri’s wife’s name was Ayati, the pilot of the gods. Niyati had a son named Mrikard and Aayiti a son named Pran. Mrikanda begot Markandeya from Manaswini and Pran from Pundarika had a son of dyutiman. All of them, became famous by the name of Bhargava.
Bhrigu Varuni: One of the eight Manas sons of Brahma, from whom the Brahmin dynasty was formed. According to the Mahabharata and the Puranas, the first Bhrigu was born from the Yagya performed by Brahma. Shiva assumed the form of Varuna and received him, as a son. That’s why he was named Bhrigu Varuni. The relation between Bhardwaj about the origin of the world and Bhrigu’s conversation with various elements is mentioned in the Mahabharata. Bhrigu Varuni is mentioned as a philosopher in Taittiriya Upanishad. Bhrigu – Varuni had two wives, Divya and Puloma. Divya was the daughter of Hiranyakashyap, Puloma had nineteen sons. Out of which 12 belong to Devayoni and 7 Rishis belong to Devayoni – Bhuvan, Bhavan, Antya, Antyaman Kratu, Shuchi, Swamurdhan, Vyaz, Vasud, Prabhava, Avyaya and Adhipati. And all the gods and sages in the Savan universe are said to be the sons of Divya. Only Vyavan is said to be the son of Puloma. Ushanas-Shukra and Chyavan these two sons have become important. The Bhrigu dynasty expanded from these, out of which the Shukra dynasty got destroyed by joining the demonic side. The Bhargava dynasty flourished from the family of Chyavana Rishi. The family of Chyavan Rishi accepted the Kshatriya Karma despite being a Brahmin. That’s why the Bhargava descendants got the title of Kshatriya Brahmin. Ashram: Bhrigu had an ashram on a mountain called Bhrigu Tung, where he did penance. Books: Bhrigu-Smriti, Bhrigu-Gita, questions related to Vedanta have been discussed in this. Bhrigu Samhita is astrology. Bhrigu-siddhanta and Bhrigu-sutra are famous books. Rishi Pippalad: In many texts, Pippalad is said to be the son of Dadhichi and in some, the name of sage Yajnavalkya’s mother was Suvarcha or Pratitheyi. Suvarcha gave birth to him and committed sati along with Dadhichi’s dead body. The birds living on the Peepal tree protected the child. That’s why it was named Pippalad. Pippalad had to suffer a lot in his childhood. Saturn was the reason for his sufferings. To end the evil of Shani, he did severe penance. Som trained him in various disciplines. Pippalvad was honored with the post of Rishi. Shani also came under its shelter. Sage Pippalad said to him, “Don’t trouble children below the age of twelve.” Rishi Pippalad is remembered for the peace of Saturn. Rishi Pippalad’s first marriage was with the daughter of Gautam Rishi and secondly with Padma, the daughter of king Anaranya. The sage had ten sons from Padma. One of their sons was named Kahor. A branch of the Atharva Veda is called the Pippalad branch. Probably the initiator of this branch was Rishi Pippalad. There are many texts by the name of Rishi Pippalad. For example, the Piplad Samhita, Pippalad Brahmana, Pippalad Shraddha – Kalpa, Prashna Upanishad mention this sage as an elemental knower. They were approached by Sukesh Bhardwaj, Shaivya Satkam, Gargya, Kausalya, Ashvalayana, Bhargava Vaidarbhi, and Kabandhan Katyayana, the sages to attain enlightenment. After acquiring knowledge in the ashram for a year, he was commanded to ask questions of the sage. 1. Kabandhana Katyayana asked the question, “From what basic element has creation arisen?” The sage replied, “The Creator created the universe from the twin of the unconscious and the life force (conscious). 2. The sage was asked by Bhargava Vaidarbhi, “Which gods perceive the originating creation?” The answer was received.” Prana is the perception of creation by the deity. Kausalya Ashvalayana’s question was “How does Prana originate 3. does it happen?” Answer “From the Spirit. 4. Sauryayani Gargya, “Who would be awake and asleep in a dream Is it? Answer, “In sleep the soul remains awake. All the rest merge into sleep.” 5. The question of Shaivya Satkam, “How far does the human desire succeed by meditating on the oṁkāra?” Answer “A man who always meditates on the oṁkāra attains self-knowledge and attains immortality. Sukesh Bhardwaj, “What is the form of the Sixteen Arts Purusha (God)?” Answer: “He dwells in the body of every individual. That is why He is all-pervading. Just as the flowing Ganga merges into the ocean, so the entire creation merges into it. Only the Purusha (God) remains. This On attaining knowledge, man attains immortality. The place where Rishi Dhadhichi gave up his body, the cow of desire left the stream of milk. That place was called “Dugdheshwar Tirtha”. On the bank of Narmada, Rishi Pippalad performed penance became famous. A sage Pippalad also came to King Parikshit. He may be a descendant of Rishi Pippalad, son of Dhadhichi, as Rishi Dhadhichi was born long before King Parikshit. A Pippalad was in the Atharva, disciple tradition of Rishi Vyasa he has been the compiler of the Atharva Veda and was a disciple of Deva Darshan or Veda Sparsha. The Pippalad Samhita (of the Atharva Veda) composed by Rishi Pippalad contains twenty Kandas. The first verse of that Samhita is “Shannodevi”. Pantjali’s Vyakaran Mahabhashya gives an example of this mantra.