ancient indian history

Rishi Kashyap.

ऋषि कश्यप
ऋषि कश्यप का आश्रम मेरु पर्वत की चोटी पर था, जहाँ वे ध्यान करते थे। ऐसा माना जाता है कि ऋषि कश्यप ने कश्मीर की स्थापना की थी। पूरे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का शासन था। कैलाश पर्वत के चारों ओर भगवान शिव के गणों की शक्ति थी। कश्मीर क्षेत्र में दक्ष राजाओं का भी राज्य था। पुराणों के अनुसार, ब्रह्मांड के निर्माण और विकास के दौरान भगवान ब्रह्मा पहली बार पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। दक्ष प्रजापति का जन्म ब्रह्मा से हुआ था। ब्रह्माजी के अनुरोध पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी असिकनी के गर्भ से 66 कन्याओं को जन्म दिया। इन कन्याओं में से 13 कन्याएँ कश्यप ऋषि की पत्नियाँ बनीं। इस प्रकार अदिति, दिति, दनु, कष्ठा, अरिष्ट, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवश, ताम्र, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतंगी और यामिनी ऋषि कश्यप की पत्नियाँ बनीं। ऋषि कश्यप को सात ऋषियों में प्रमुख माना जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार सातवें मन्वंतर में सप्तर्षि इस प्रकार हैं- वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।
कश्यप ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। पुराणों के अनुसार हम सब उनकी संतान हैं। सुर-असुर के मूल पुरुष, सभी देवताओं, राक्षसों और मनुष्यों ने ऋषि कश्यप के आदेश का पालन किया। कश्यप ने अनेक स्मृति ग्रंथों की रचना की थी।
वायु पुराण में मरीचि पुत्र कश्यप को समस्त प्रजाओं का स्वामी एवं ऐश्वर्यशाली लिखा है। विभिन्न पुराणों में इनकी पत्नियों का संख्या में मतभेद है। भागवत और विष्णु पुराण के अनुसार उनकी चार पत्नियों थी। उनमें से एक मुनि थी। वह प्राचेतस दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। मुनि विदुषी और गम्भीर प्रकृति की थी। कश्यप की सन्तानें अपनी-अपनी माता के अनुरूप थी, और अपनी मां के नाम से जानी जाती थी। मुनि की सन्तान मौन कहलाई। कश्यप वंश के एक ऋषि अणीचिन मौन कहलाते थे। मोहयाल उपजाति “मोहन” मौन का ही विकृत रूप है। कश्यप ने गोत्र वृद्धि की कामना से कठोर तपस्या की। परिणाम स्वरूप उनके घर ब्रह्म के अंशभूत दो महान तेजस्वी पुत्र हुए। उनके नाम वत्सार और असित थे। वत्सार के पुत्र निध्रुव और रेम्य हुए। निध्रुव की पत्नी सुमेधा से अनेक कुण्डपायन हुए। असित की पत्नी एकपर्णा से देवल हुए। कश्यप, वत्सार, असत, निधव, रभ्य-पुत्र रैम्य और देवल ये छः ऋषि ब्रह्मवादिन कहलाए। कश्यप के मानस पुत्र नारद और पर्वत तथा मानस-पुत्रियाँ अरुन्धती और मनसा थी।
पृथ्वी रक्षाः परशुराम द्वारा निरन्तर युद्धों के कारण पृथ्वी पर हाहाकार मच गया। देश में भीषण अकाल पड़ गया। समस्त जीव जन्तु भूखे-प्यासे मरने लगे। राजाओं के संहार से प्रदेशों में अराजकता फैल गई। उत्पीड़ित पृथ्वी (पृथ्वी वासी) कश्यप की शरण में गई। कश्यप ने उसकी रक्षा की। इसलिए पृथ्वी काश्यपी कहलाने लगी। पृथ्वी ने कश्यप से क्षत्रिय
राजाओं की मांग की। ऋषि ने उसे सान्तवना दी ।
परशुराम ने समस्त पृथ्वी को जीतकर सरस्वती तट पर अश्वमेघ यज्ञ किया। इस यज्ञ में ब्रह्मा, कश्यप अध्वर्यु, गौतम उद्गाता और विश्वामित्र थे। भरद्वाज, अग्निवेश्य आदि ऋषियों ने भी इस यज्ञ में भाग लिया। यज्ञ के बाद परशुराम ने समस्त विजित प्रदेश कश्यप को दक्षिणा के रूप में दे दिए। कश्यप ने परशुराम से कहा, “दक्षिणा में दान किए प्रदेश में रहने का अब उसे कोई अधिकार नहीं उसे इस प्रदेश से बाहर निवास ढूंढना होगा।” परशुराम पश्चिमी तट पर बम्बई के पास “शूर्पारक” (वर्तमान सोपारा) स्थान पर जा बसे। ऐसा लगता है कि परशुराम से धरती दान लेना और उसे वहां से निकालना, सभी ऋषियों की पूर्व योजना थी, ताकि नरसंहार रोक कर नष्ट हुई धरती को विकसित किया जा सके।
पृथ्वी की मांग पर कश्यप ने कुछ क्षत्रिय राजाओं का अभिषेक किया और समाज में व्यवस्था स्थापित की सम्पूर्ण धरती के प्राणियों और वनस्पतियों का सरंक्षण व संवर्द्धन किया। युद्धों के कारण पुरुष वर्ग या तो समाप्त क्षत-विक्षत हो गया था या इस अवस्था में वह कार्य करने की क्षमता खो चुका था। अतः विकास प्रक्रिया में प्रत्येक विभाग का संचालन स्त्रियों के हाथों में सौंपा गया।
इरा को वृक्षादि, दया को पर्वतों की सुरक्षा सौंपी। ताम्रा को गाय-भैसों आदि दुधारू पशुओं को संभालने का कार्य दिया। उसकी देख-रेख में इन पशुओं की कई नस्लें पैदा की गई। ग्रावा को जंगली जन्तु, मिति को जलचरगण, काष्टा को अश्वादि एक खुर वाले, कपिला को नंदिनी गाय और दो खुर वाले प्राणी सौंपे गए। लोधवशा ने क्रूर जलचर पक्षी संभाले। कद्रू के अधीन 123 नाग जातियाँ व सुरसा के नियंत्रण में याजुधानादि राक्षस और एक हजार सर्प थे। पलोमा साठ हजार पौलोम राक्षसों और 74 हजार कालकेय पर नियंत्रण रखती थी। दनु के
पास सौ दानव थे। उन सबका प्रधान विप्रचिति’ था। अदिति ने आदित्यों और अरिष्टा ने गंधव और अप्सराओं का संरक्षण किया। दिति दैत्यों पर नियन्त्रण रखती थी। पद्म पुराण में दैत्य जैसा कार्य करने वाला प्रत्येक प्राणी दीति पुत्र कहलाता है। विनता ने गरुड़, आरूणि आदि पक्षीराज की देख-रेख की।
कश्यप के नाम पर कश्यप सिद्धान्त आदि, कई ग्रन्थ है। कश्यप संहिता में पांच अध्याय है। श्लोक संख्या 1500 है। इसमें सूर्य पर प्राप्त धब्बों का उल्लेख है, तथा दूरवीक्षणादि यंत्रों का वर्णन है।
कश्यप अठारह उपस्मृतिकारों में से एक हैं। इनके ग्रन्थों में आधिक कर्म, श्राद्ध, अशीच प्रायश्चित आदि के विषय में बड़ी जानकारी दी है। कश्यप स्मृति में गृहस्थ के कर्तव्य दिए हैं। पाणिनि ने भी इसका व्याकरण कार के रूप में उल्लेख किया है। “ब्रह्मवादिन” ऋऋषियों के अतिरिक्त कश्यप वंश में प्रसिद्ध ऋषि कम्य, शाण्डिल्य, विभांडक, ऋष्यशृंग, धीम्य, संदीपन, एवं याज आदि हुए हैं।

English Translation.
Rishi Kashyap.
Sage Kashyapa’s hermitage was on the top of Mount Meru, where he used to meditate. It is believed that the sage Kashyap, founded Kashmir. Entire Kashmir was ruled by Rishi Kashyap and his sons. Lord Shiva’s ganas had power around Mount Kailash. There was also the kingdom of Daksh kings in the Kashmir region. According to the Puranas, Lord Brahma first appeared on the earth during the creation and development of the universe. Daksh Prajapati was born from Brahma. On the request of Brahmaji, Daksh Prajapati gave birth to 66 girls from the womb of his wife Asikni. Out of these girls, 13 girls became the wives of sage Kashyap.In this way, Aditi, Diti, Danu, Kashtha, Arishta, Surasa, Ila, Muni, Krodhavasha, Tamra, Surbhi, Surasa, Timi, Vinata, Kadru, Patangi and Yamini became wives of Rishi Kashyapa. Sage Kashyap is considered to be the chief among the seven sages. According to the Vishnu Puranas, the Saptarishis in the seventh Manvantar are as follows- Vasishtha, Kashyapa, Atri, Jamadagni, Gautama, Vishwamitra and Bharadwaj.
Kashyap is considered the best among sages. According to Puranas, we all are his children. All the gods, demons and humans, the original men of Sur-Asura, obeyed the orders of the sage Kashyap. Kashyap had composed many Smriti texts.
In the Vayu Purana, Marichi’s son Kashyap has been mentioned as the wealthy lord of all subjects. Different Puranas mention different number of his wives. According to Bhagavata and Vishnu Purana, he had four wives. One of them was a sage. She was the daughter of Prachetas Daksha Prajapati, Muni Vidushi, who was of serious nature. Kashyapa’s children were known by their mother’s name. The children of muni are called maun. A sage of the Kashyap dynasty was called Anikin Maun. Mohayal sub-caste “Mohan” is a distorted form of Maun. Kashyap did tapasya, with a desire to increase the gotra. As a result, two great Tejasvi sons were born in his house. They were parts of Brahma. Their names were Vatsara and Asita. Vatsar’s sons were Nidhruv and Remya. Nidhruv’s wife Sumedha had many kundpayans. Asit’s wife got married to Ekparna. Kashyap, Vatsar, Asat, Nidhav, Rabhya-son Raimya and Deval these six sages are called Brahmavadin. Kashyapa’s Manas sons were Narad and Parvat and Manas-daughters were Arundhati and Manasa.
Due to continuous wars by Parshuram, there was hue and cry on the earth. There was a severe famine in the country. All living beings started dying of hunger and thirst. Anarchy spread in the states due to the destruction of the kings. The oppressed Prithvi (the inhabitants of the earth) took refuge in Kashyapa’s ashram Kashyapa protected them. The sage consoled prithvi.
That’s why the earth came to be known as Kashyapi. Prithvi was blessed by Kashyap, to be known as Kshatriya. .
Parshuram conquered the whole earth and performed Ashwamedha Yagya on the banks of Saraswati river. Brahma, Kashyapa, Adhvaryu, Gautam, Udgata and Vishwamitra were present in this Yagya. Bharadwaj, Agniveshya etc. sages, had also participated in this yagya. After the Yajna, Parshuram gave all the conquered territories to the Rishi Kashyap as dakshina.
Rishi Kashyap ingormed Parashurama, that He had no right to live in the land he had donated to him, as dakshina.
Therefore, he shall have to find a residence outside this donated land. Parashurama settled on the west coast at “Shurpark” (present day Sopara) near Bombay. It seems that it was a pre-planned move of all the rishis to take donation of the conquered land from Parshuram and thereafter remove him from there, so that by stopping the carnage, the conquered land could be developed.
On the demand of the earth, Kashyap anointed some Kshatriya kings and established order in the society, protected and promoted the animals and plants of the entire earth. Due to the wars, the male class had either been destroyed or had come to a state people had lost their ability to work. Therefore, in the process of development, the management of each department was handed over to women.
Ira was entrusted with the trees, Daya was given the protection of the mountains. Tamra was given the task of taking care of milch animals like cows and buffaloes. Many breeds of these animals were created under his care. Wild animals were assigned to Graava, aquatic animals to Miti, horsemen with one hoof to Kashta, Nandini cow to Kapila and animals with two hoofs. Lodhavsha took care of the ferocious aquatic birds. There were 123 serpent castes under Kadru and Yajudhanadi demons and one thousand snakes under the control of Sursa. Paloma had control over 60,000 Palom demons and 74,000 Kalakeyas.
There were hundred demons nearby. The head of all of them was ‘Viprachiti’. Aditi protected the Adityas and Arishta protected the Gandhavs and Apsaras. Diti used to control the demons. In Padma Purana, every creature, who acted like a demon, was called Diti Putra. Vinata took care of Garuda, Aruni etc. took care of Pakshiraj.
There are many books describing Kashyap policies. There are five chapters in Kashyap Samhita. Total number of verses are 1500. In this samhita, there is a mention of spots found on the Sun, and a description of telescopes etc.
Kashyapa is one of the eighteen Upasmritikars. In his books, a lot of information has been provided about Adhik Karma, Shraddha, Ashich Atonement etc. The duties of a householder have also been given in Kashyap Smriti. Panini has also mentioned it as a grammar text book. In addition to the “Brahmavadin” sages, the famous sages of the Kashyap dynasty were Kamya, Shandilya, Vibhandaka, Rishyasringa, Dhimya, Sandeepan, and Yaj.

 

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