चित्रकूट विंध्याचल की सुरम्य घाटी की गोद में बसा तीर्थ-स्थल है। प्रयाग से चित्रकूट 2-3 घण्टे का रास्ता है,
किर्वी से चित्रकूट 10 कि.मी. है। यह क्षेत्र ऐतिहासिक, धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व रखता है। श्री राम चन्द्र जी से सम्बधिंत अनेक धार्मिक ग्रन्थों में इस पवित्र क्षेत्र की महिमा का वर्णन है। श्री राम जी ने इसी क्षेत्र में बनवास काल के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थें। यहां के शैल शिखर, झरनें, कन्दराएं सभी अनुपम हैं। ऐसा लगता है कि प्रकृति के कण-कण में राम नाम गूँज रहा है। इसके प्राकृतिक दृश्यों को देखकर ऐसा दैवी आनन्द प्राप्त होता हैं जिस का वर्णन करने में मैं असमर्थ हूँ । महाऋषि बाल्मीकि ने चित्रकूट पर्वत की महिमा का उल्लेख इस तरह किया है, “यह पर्वत परमं पवित्र, मनोहर और मन-मोहक है। यह रमणीक पर्वत कई प्रकार के वृक्षों, लताओं व फल-फूलों से परिपूर्ण है। यहां हाथी, हिरण व अन्य जानवर निर्मीक हो कर विचरते हैं। यहां असंख्य जल- सोत, झरने व कन्दराएं हैं। मंदाकिनी नदी मंथर गति से पर्वतीय प्रदेश में इस तरह बह रही है, जैसे यह इस प्रदेश के कंठ की मुक्तावली हो । इस नदी का दर्शन, स्पर्श, स्नान करने से मोक्ष प्राप्त होता है। गो० तुलसी दास के अनुसार मंदाकिनी पाप समूह को भक्षण करने वाली डाकिनी है। ऋषि वाल्मीकि ने श्री राम चन्द्र को चित्रकूट में बसने का परामर्श दिया। गोस्वामी तुलसी दास ने इस का वृत्तान्त रामचरितमानस में बड़ा सुन्दर किया है :
चित्रकूट गिरि करहुँ निवासु तहँ तुम्हार सब भांति सुपासु ।। सैल सुहावन कानन चारु । करि केहरि मृग विहग विहारू ।। चित्रकूट महिमा अमित कही महामुनि गाई । आइ नहाएं सरित वर सिय समेत दोड़ भाई ।। चित्रकूट रघुनंदन छाए । समाचार सुनि सुनि मुनि आए । आवत देख मुदित मुनि वृन्दा । कीन्ह दंडवत रघुकुल चंदा ।। श्री राम जी के चित्रकूट में वसने का समाचार सुनकर भील, किरात प्रसन्न हो जाते है। वे कंद, मूल, फल लेकर आते है। वे सभी स्वयं को सौभाग्यशाली समझते है : अब हम नाथ सनाथ सब भए देखि प्रभु पाय | भाग हमारे आगमनु राउर कोसल राय ।। हम सब धन्य सहित परिवारा। दीख दरस भर नयन तुम्हारा । हम सेवक परिवार समेता नाथ न सकुचव आयसु देता ।। प्रभु श्री राम चन्द्र वनवासियों के वचन इस तरह सुन रहे हैं, जैसे पिता बच्चों के वचन सुनता है। रामहि केवल प्रेम पियारा । जान लेउ जो जानन हारा ।। राम सकल वनचर तब तोषे । कहि मृदु वचन प्रेम परितोषे ।।
प्रयाग में ऋषि भारद्वाज का आश्रम था। जब श्री राम उन से मिलने गए, उन्होनें भी चित्रकूट क्षेत्र की विशेषताएं बताते हुए उन्हें यहीं पर बनवास काल व्यतीत करने का परामर्श सन् 1700 ई0 में चित्रकूट क्षेत्र पन्ना रियासत के अधीन था। वहां के राजा अमान सिंह के पिता ने मंदाकिनी के घाटों व मन्दिरों के जीणेद्धार का काम आरम्भ किया था। जिसे राजा अमान सिंह ने भी जारी रखा। उसके पश्चात् भी कई राजाओं ने इस पुण्य कार्य में सहयोग दिया। इस समय चित्रकूट का अधिकतम भाग मध्य प्रदेश के सतना जिले में है। उतरी भारत से बसों द्वारा आने वाले लोग ‘कर्वी’ बस अड्डे पर उतरते है। वहां से चित्रकूट 10 कि.मी. है। चित्रकूट में महाराजा पन्ना ने 360 व अन्य राजाओं ने कई मन्दिर बनवाए व कइयों का जीर्ण- उद्धार कराया। यहां प्रमुख मन्दिरों का ही उल्लेख किया जा रहा है ।
1. रामघाट : चित्रकूट पर्वत श्रेणी से हजारो जल स्रोत निरन्तर बहते रहते है। ये जल स्रोत एक कुण्ड में विलीन होकर आगे मंदाकिनी नदी का रूप धारण कर लेते है। मंदाकिनी नदी के इसी स्थल पर भगवान राम, सीता व लक्ष्मण स्नान करते थें। इसी स्थान पर मंदाकिनी गंगा की आरती होती है। रात्रि को आरती के समय का दृश्य बहुत सुन्दर होता है। इसी स्थान पर ही तुलसीदास को राम जी के दर्शन हुए थे, “तुलसी दास चन्दन घिसे तिलक देत रघुवीर। यहीं पर, तुलसीदास की पर्ण कुटी थी, और यही से वे रामायण की कथा कहते थें । 2. मतगयन्ध शिव मन्दिर : राम घाट से कुछ ऊँचाई पर स्थित है।
3. यज्ञ वेद : सतयुग में ब्रह्मा जी ने इस स्थान पर 108 कुण्डीय यज्ञ की पूर्णाहुति की थी । 4. बड़ा मठ : महाराजा पन्ना ने चित्रकूट के जीर्ण – उद्धार की योजना बनाई, तो अपनी रिहायश के लिए इस भवन का निर्माण कराया। यह स्थान रामानुज सम्प्रदाय से सम्बंधित है और सभी स्थानों से बड़ा होने के कारण बड़ा मठ’ कहलाता है। राजा अमान सिंह के गुरू मधुराचार्य गृहस्थ थें। अतः सन् 1816 ई0 में गृहस्य गद्दी के रुप में इसकी स्थापना की गई। इस स्थान पर राम के दरबार की मूर्तियां स्थापित हैं। साथ ही एक “पितृ स्मृति विश्राम गृह है । यहां यात्रियों के लिए कमरे उपलब्ध हो जाते है।
5. राघव प्रयाग : यह स्थान तीन नदियों मंदाकिनी, पयश्रवनी (पैस्वनी) और गायत्री का संगम स्थल है। इसी जगह भगवान राम ने अपने पिता महाराजा दशरथ का पिण्ड दान किया था। इसका महत्व प्रयाग राज से भी अधिक माना जाता है। 6. निर्मोही अखाड़ा : यह अखाड़ा रामानंद सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा संचालित है। इस समय यहां 108 वर्षीय “राम नाम अखण्ड कीर्तन चल रहा है। यहां साधु-महात्माओं की सदैव सेवा होती है। 7. विजावर मन्दिर : यह मन्दिर मंदाकिनी नदी के पार के तट पर स्थित है। इसका निर्माण विजावर रियासत की महारानी रतन कुमारी ने किया था । 8. सिरसा वन : यह स्थान जानकी कुण्ड से एक कि.मी. पर है। यहां जानकी जी विभिन्न कुसुमों से अपना श्रृंगार करती थी, यह श्रृंगार वन भी कहलाता है। 9. स्फटिक शिला : यह श्री राम जी व जानकी जी का विश्राम स्थल था । इसी शिला पर भगवान राम बैठे थे, जब इन्द्र पुत्र जयन्त ने धृषता की और दण्डित हुआ। मंदाकिनी नदी के पार की पहाड़ी जयन्त पहाड़ी कहलाती है । 10. सती अनुसूया आश्रम : यह आश्रम राम घाट से दक्षिण की ओर 18 कि.मी. दूर स्थित है। यहां आटो रिक्शा, टैक्सी व बस पहुंचा देती है। इसी आश्रम में अत्रि ऋषि अपनी पत्नी के साथ निवास करते थें। एक बार 10 वर्ष तक वर्षा नहीं हुई। इस कारण भयंकर अकाल पड़ गया । पशु-पक्षी और समस्त प्राणी हा हा कार करने लगे। उन्हें दुखी देख कर महा सती अनुसूया ने उग्र तपस्या की। मंदाकिनी की धारा प्रवाहित व वृक्षारोपण कर सारा क्षेत्र हरा भरा कर दिया। समस्त ऋषिजनों के कष्ट दूर हो गए। श्री राम व सीता इस आश्रम में ऋषि से भेंट करने गए थें। सती अनुसूया ने सीता जी को सतीत्व की महिमा व नारी के कर्तव्य के प्रति उपदेश दिया था । इस स्थान से आगे दण्डक वन आरम्भ हो जाता है। उस समय इस वन प्रदेश में राक्षसों ने उत्यात मचा रखा था। ऋषि-मुनि, तपस्वी सभी उन की दुष्टता से दुखी थें । 1950-60 ई० में स्वामी परमानंद परम हंस जी ने इस आश्रम का जीणेद्धार किया । इसलिए लोग इसे परम हंस आश्रम भी कहते है। 11. जानकी कुण्ड यह स्थल राम घाट से दो कि.मी. दक्षिण की ओर है। प्रकृति की मनमोहक छटा को अपनाएं यह चित्रकूट का प्रमुख स्थल है। मान्यता है, कि बनवास काल में सीता जी इस स्थान पर स्नान करने आती थी ।श्रद्धालुओं को जानकी जी के चरण चिन्ह के दर्शन भी होते है। 12. गुप्त गोदावरी नदी : गोदावरी नदी नासिक से गुप्त होकर यहां प्रकट होती है। यह स्थान रामघाट से 22 कि.मी. दूर है। बस, टैक्सी आटो आदि जाते रहते है। इस स्थान पर दो गुफाएं है। पुराणों के अनुसार भगवान राम के पहुंचने से पूर्व ही देवताओं ने उनके निवास के लिए इन गुफाओं का निर्माण कर दिया था । ऊपर और नीचे की गुफा में जल धारा बह कर नीचे आती है, जिस के शीतल जल में लोग स्नान करतें है। पहले ये गुफाएं अंधेरी होती थी परन्तु अब मध्यप्रदेश सरकार ने इन में प्रकाश का प्रबंध कर दिया है। पंखे भी लगे है। गुप्त गोदावरी में भोजनालय तथा निवास की सुविधा है। छोटा सा बाजार भी है। वन देवी स्थान : राम घाट से तीन कि.मी. की दूरी पर मंदाकिनी के पार के तट पर यह स्थान है। कहतें है कि बनवास काल में श्री राम सीता, लक्ष्मण की रक्षा के लिए अयोध्या की कुल देवी वन देवी के रूप में इधर रहती थी। यह स्थान बड़ा सुन्दर है। जानकी जी के चरण-चिन्ह यहां अंकित है। हनुमान धारा : यह स्थान पर्वत पर स्थित है। राम घाट से लगभग चार कि.मी. दूर से पर्वत की चढ़ाई आरम्भ होती है। लगभग 360 सीढ़ियां है। हनुमान जी की वाम भुजा से शीतल जल की धारा सदा बहती रहती है। इस जल को दो कुण्डों में इकट्ठा किया जाता है। यह निर्मल जल धारा कहां से आती है और कुण्डों में गिरने के बाद कहां समा जाती है। यह किसी को ज्ञात नहीं । हनुमान धारा के पास ही पंचमुखी हनुमान धारा के नाम से एक अन्य स्थान है। यहां पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा है। हनुमान धारा से 100 सीढ़िया ऊपर चढ़कर सीता जी का स्थान हैं, जहां वे कंद, मूल का भोजन तैयार करती थी। इस स्थान का नाम सीता रसोई है। 13. देवांगना : यह स्थान भी उपरोक्त पर्वत पर है। जयन्त की पत्नी देवांगना ने यहा कठोर तपस्या की थी। अगले जन्म में उसने राधा के रूप में जन्म लिया और विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को पति रूप में प्राप्त किया । 13. कोट तीर्थ : देवांगना से नौ कि. मी. दूर इसी पर्वत पर कोट तीर्थ है । यह कोट नामक ऋषि की तपस्थली है। यहां भी एक जल का झरना हैं। 14. बांके सिद्ध : इस स्थान पर ऋषियों ने तप कर के सिद्धि प्राप्त की थी। यहां शिव की प्रतिमा है। 15. श्री राम दर्शन : दीन दयाल शोध संस्थान ने पंचावटी में पांच मन्दिरों का निर्माण कराया है। विख्यात् समाज सेवक श्रद्धेय नाना जी देश मुख की प्रेरणा से डा० राजा राम जय पुरिया ने अपने पिता पद्म भूषण सेठ मुँगतू राम की याद में ये मन्दिर बनवाए और इन पर आए खर्च का भार स्वयं उठाया है। प्रवेश द्वार के भीतर घुसते ही हनुमान जी के हृदय में विराजमान भगवान राम के दर्शन होतें है। तत्पश्चात् रामायण लिखते महर्षि वालमीकि व राम चरित मानस का पाठ करते गो० तुलसी दास है। पंचवटी में निर्मित पांच मन्दिरों का विवरण इस प्रकार है :प्रथम मन्दिर में विभिन्न देशों में श्री राम के प्रति आस्था के प्रतीकों को दिखाया गया है। दूसरें, तीसरें, चौथें मन्दिरों में श्री राम के जीवन की प्रमुख घटनाएँ कला कृतियों के माध्यम से दिखाई गई है। पाँचवे मन्दिर में सिहांसनारूढ़ महाराज श्री राम चन्द्र के दर्शन होते 16. आरोग्य धाम : आदरणीय नाना देश मुख जी की अन्य देन आरोग्य धाम है। यह आयुर्वेदिक चिकित्सालय दीन दयाल शोध संस्थान द्वारा आधुनिक ढंग से बनाया गया है। यहां जड़ी-बूटियों द्वारा रोगों का उपचार किया जाता है। 17. भरत कूप : यह स्थान इलाहाबाद बांदा राजमार्ग पर है। इस स्थान पर भरत व श्री राम जानकी के मन्दिर है। पन्ना नरेश छत्र साल ने इस स्थान का जीर्ण उद्धार कराया था। जब भरत श्री राम जी को वापिस अयोध्या लाने के लिए गए थे, अपने साथ समस्त तीर्थो का जल श्री राम के राज्यभिषेक के लिए ले गए थे। परन्तु राम जी माने नहीं। अतः वह जल इस कूप में डाल दिया गया और ऋषियों ने इसका नाम भरत कूप रखा। इस कुएं की अब भी बड़ी महानता है। मकर संक्रान्ति को लाखों लोग इसमें स्नान करतें है । 18. कामद गिरि : कामद गिरि परिक्रमा की परिधि 5 कि.मी. है। इस पर्वत पर कामना देवी प्रतिष्ठित थी। भगवान श्री राम चित्रकूट पहुंचे तो उन्होनें राक्षसों से जनता को मुक्त कराने के लिए इस देवी की अराधना की थी। पर्वत पर स्थित इस मन्दिर में प्रवेश के लिए चारों दिशाओं में चार द्वार है। इन द्वारों के नाम इन्द्र, नील, महा नील, पहा राग और महा राग है। चित्रकूट वासियों की मान्यता है कि कामद गिरि की प्रथम परिक्रमा भरत ने की थी । मंदिर में स्थित कामता नाथ स्वामी की चार मूर्तियां हैं।