दीवान दुर्गामल : दीवान दुर्गामल
बाबा पराग दास छिब्बर के पुत्र द्वारकादास छिब्बर के बेटे दुर्गामल गुरू हरिराय से लेकर नवम गुरू तेगबहादुर जी तक तीनों गुरूओं के दीवान रहे।
अगस्त 1664 में, एक सिख संगत दीवान दुर्गामल की अध्यक्ष ता में बकाला पहुंची और तेग बहादुर को सिखों का नौवां गुरु नियुक्त किया। दीवान दुर्गा मल ने संगत का नेतृत्व किया, और उन्हें गुरुपद प्रदान करते हुए एक औपचारिक “टीका समारोह” आयोजित किया गया।
गुरू घर के विरोधियों धीरमल्ल और मेहरबान आदि के षडयंत्रो से वे गुरूओं की रक्षा करते रहे। अष्टम गुरू श्री हरिकृष्ण के अकाल निधन के पश्चात वे दुखी गुरू परिवार को धीरज बंधाने कीर्तिपुर पहुंचे। प्रसिद्ध इतिहासकार डा० हरिराम गुप्ता लिखते हैं, “दीवान दुर्गामल उनके भतीजे भाई मतिदस, सतिदास, भाई गुरदित्ता व भाई दयाला पंचायत के सदस्य थे। दीवान दुर्गामल सदैव गुरू जी के साथ रहते, उन्होंने विरोधी पक्ष के मनसूबे सफल नहीं होने दिए। गुरू तेगबहादुर की आसाम यात्रा में भी दीवान जी गुरू जी के साथ रहे। वृद्ध होने के कारण उन्होंने गुरू जी से प्रार्थना की कि उन्हें पद मुक्त कर दिया जाए।