Freedom Struggle

Written by Alok Mohan on April 20, 2023. Posted in Uncategorized

स्वराज्य का संघर्ष

“दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल”

“Agree with you bapu that we got independence (1947 Partition) because of your efforts”
But why history of post partitioned Hindu part of India, didn’t do justice, with following great souls, who were subjected to the most inhuman conditions in cellular Jail of Andeman Nicobar, by the British.

अगस्त, 1907 में श्री शान्ति नारायण ने प्रयाग में ‘स्वराज्य’ समाचार पत्र का प्रकाशन किया। उसके सात सम्पादक जेल में भेज दिए गए । श्री लोकमान्य तिलक ने शुभ कामनाएं देते हुए कहा, “इस समाचार पत्र द्वारा भगवान, उत्तर प्रदेश में स्वतन्त्रता संग्राम की सहायता करें। श्री मोती लाल घोष ने संदेश भेजा, “स्वराज्य पत्र द्वारा ईश्वर भारत में राजनैतिक जाग्रति लाए। परन्तु इसे चलाने के लिए तुम्हे सदैव अपना उत्तराधिकारी सम्पादक तैयार रखना पड़ेगा, क्योंकि तुम्हारा एक पैर जेल के भीतर होगा”
प्रेस को नीलाम कर दिया गया। स्वराज्य के अगले सम्पादक मोती लाल वर्मा बने। उनके द्वारा कुछ प्रतियां ही निकाली गई थी कि उन्हें काले पानी पहुंचा दिया गया। गुरुदासपुर जिले (पंजाब) के बाबू राम हरि अगले सम्पादक बने । ग्यारह प्रतियां निकालने के पश्चात उन्हें भी सैलूलर जेल (पोर्ट ब्लेयर) भेज दिया। तत्पश्चात् लाहौर (पाकिस्तान) के मुंशी राम सेवक स्वराज्य के सम्पादक नियुक्त हुए पुलिस वारण्ट लेकर उनके साथ प्रयाग तक गई। उन्हें हिरासत में ले लिया गया। जिला मजिस्ट्रेट ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा, अब इस मुगलिया सिंहासन पर कौन सुशोभित होगा।” वह नहीं जानता था कि भारत को उस के सुपूतों में होड़ लगी थी। अगले सम्पादक श्री नंद लाल बने। बारह प्रतियां निकालने के पश्चात उन्हें भी ‘काला पानी की सजा हुई। अब बारी आई अफ्रीका से लौटे लघा राम कपूर की। उनके विवाह को थोडा समय हुआ था। लघा राम जानते थे कि वे यह कर्तव्य थोड़े समय ही निभा पाएंगे। अतः उन्होंने तत्काल सम्पादक की नियुक्ति हेतु एक विज्ञापन दिया- “”स्वराज्य’ के लिए एक सम्पादक की आवश्यकता है। वेतन दो चपातियाँ, बिना घी, प्रतिदिन घड़े का ठण्ड पानी औरसम्पादकीय के लिए दस वर्ष का कठोर
मुक्त कराने के लिए दण्ड।
एक भारतीय महिला का अंग्रेज ने बलात्कार किया था। लघा राम ने स्वराज्य पत्र में लिखा,
“यह महिला हम सभी की बहिन थी। अंग्रेज़ ने एक सम्मानित महिला का शील भंग करके हमें दुखी किया है।”

अगस्त, 1907 में श्री शान्ति नारायण ने प्रयागराज में ‘स्वराज्य’ समाचार पत्र का प्रकाशन किया। उसके सात सम्पादक जेल में भेज दिए गए । श्री लोकमान्य तिलक ने शुभ कामनाएं देते हुए कहा, “इस समाचार पत्र द्वारा भगवान, उत्तर प्रदेश में स्वतन्त्रता संग्राम की सहायता करें”
श्री मोती लाल घोष ने संदेश भेजा, “स्वराज्य पत्र द्वारा ईश्वर भारत में राजनैतिक जाग्रति लाए। परन्तु इसे चलाने के लिए तुम्हे सदैव अपना उत्तराधिकारी सम्पादक तैयार रखना पड़ेगा, क्योंकि तुम्हारा एक पैर जेल के भीतर होगा”
प्रेस को नीलाम कर दिया गया।
स्वराज्य के अगले सम्पादक मोती लाल वर्मा बने। उनके द्वारा कुछ प्रतियां ही निकाली गई थी कि उन्हें काले पानी पहुंचा दिया गया। गुरुदासपुर जिले (पंजाब) के बाबू राम हरि अगले सम्पादक बने । ग्यारह प्रतियां निकालने के पश्चात, उन्हें भी सैलूलर जेल (पोर्ट ब्लेयर) भेज दिया। तत्पश्चात् लाहौर (पाकिस्तान) के मुंशी राम सेवक स्वराज्य के सम्पादक नियुक्त हुए, पुलिस वारण्ट लेकर उनके साथ प्रयाग तक गई। उन्हें हिरासत में ले लिया गया। जिला मजिस्ट्रेट ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा,
“अब इस मुगलिया सिंहासन पर कौन सुशोभित होगा।”
वह नहीं जानता था कि भारत में उस के सुपूतों में होड़ लगी थी। अगले सम्पादक श्री नंद लाल बने। बारह प्रतियां निकालने के पश्चात उन्हें भी काला पानी की सजा हुई। अब बारी आई अफ्रीका से लौटे “लघा राम कपूर” की। उनके विवाह को थोडा समय हुआ था। लघा राम जानते थे कि वे यह कर्तव्य थोड़े समय ही निभा पाएंगे।
अतः उन्होंने तत्काल सम्पादक की नियुक्ति हेतु एक विज्ञापन दिया- “”स्वराज्य के लिए एक सम्पादक की आवश्यकता है। वेतन दो चपातियाँ, बिना घी, प्रतिदिन घड़े का ठण्ड पानी और सम्पादकीय के लिए दस वर्ष का कठोर दण्ड”

एक भारतीय महिला का, उन दिनो, एक अंग्रेज ने बलात्कार किया था।
लघा राम ने स्वराज्य पत्र में लिखा,

“यह महिला हम सभी की बहिन थी। अंग्रेज़ ने एक सम्मानित महिला का शील भंग करके हमें दुखी किया है।”

ऐसे लेख लिखने भी अंग्रेज़ी सरकार को सहन नहीं थे। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 121 के अन्तर्गत मृत्युदण्ड या काले पानी में आजीवन कारावास की सजा दी जाती थी। लघा राम निर्भीक व स्पष्टवादी थे। उन्होंने तीन लेख ही लिखे थे कि उन्हें प्रत्येक लेख के लिए दस वर्ष की सख्त सजा मिली। सैलूलर जेल में उन्हें सभी कैदी फील्ड मार्शल’ कहते थे। छोटे से अपराध के लिए काले पानी की सजा देना अंग्रेजों का स्वभाव बना गया था। बाबू राम हरि को निम्न कविता लिखने के | लिए 21 वर्ष की काले पानी की सजा हुई थी।

“मेरी मातृभूमि तुम क्यों रो रही हो? विदेशियों का शासन खत्म होने वाला है। ये बोरिया बिस्तर बांधने वाले हैं। राष्ट्रीय लज्जा और दुर्भाग्य, अब अधिक देर तक नहीं रहेगा। आजादी की हवा बहनी शुरू हो गई है। बूढे और जवान सभी स्वतंत्रता के लिए उत्सुक है। भारत स्वतंत्र होगा। हरि भी आजादी मनाएगा।”

भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार “जो भी ब्रिटिश महारानी का विरोध या विरोध का प्रयास करेगा। उसे मृत्यु दण्ड, काले पानी की सजा के साथ जुर्माना देना होगा।” बलिदानी स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम में असंख्य वीर शहीद हुए। उन सब का विवरण उपलब्ध करना असंभव है। मार्च 1857 ई० से 1900/ ई० तक के कुछ गिने चुने बलिदानी जो भारत व बर्मा में शहीद हुए। उनका अलेख निम्न है।
1. मंगल पाण्डे
1857 ई० का स्वतन्त्रता युद्ध आरम्भ करने का श्रेय इस वीर को दिया जाता है। कलकत्ता की बैरकपुर जेल में 8 अप्रैल, 1857 ई० को इसे फॉसी दी गई। 2. रानी लक्ष्मी बाई
खूब लड़ी मरदानी वह तो झांसी वाली
रानी थी 18 जून 1858 ई० को इस वीरांगना ने अंग्रेजों के साथ लड़ते-लड़ते प्राण त्यागे। अन्त समय में कहा, “मेरा शव विधर्मियों के हाथ न लगे । एक साधु ने रानी के शव का अपने झोंपड़े में आगे लगा कर अन्तिम संस्कार कर दिया।
3. माधो सिंह उड़ीसा का जमींदार, अंग्रेज सरकार के विरूद्ध झण्डा खड़ा किया। 1858 ई० को फांसी हुई।
4. तात्या टोपे को भी 1858 ई० को फासी हुई।
नाना साहिब की सेना ने अंग्रेजों के विरूद्ध कानपुर बगावत कर दी।
5. ज्वाला प्रसाद नाना साहिब की सेना का कमाण्डर, मई, 1860 ई० में कानपुर में फांसी ।
दिल्ली की सड़को पर अंग्रेजो द्वारा मारे गए लोगो के शवों के ढेर लग गए थे। बादशाह बहादुर शाह को बर्मा भेज दिया गया था।
6. नामधारी लहना सिंह को 15 सितम्बर, 1871 ई० को पेड़ पर लटका कर सभी के सामने फांसी दी गई
7. गुरु राम सिंह जी को बर्मा भेज दिया वहां उनका 1885 ई० में देहान्त हो गया।
8. उनके 86 नामधारी शिष्यों को जनवरी 1877 ई० में बड़ी क्रूरता से मारा गया। कईयों को तोपों के गोले दागकर और कईयों को फांसी पर चढ़ाया गया। छोटे-छोटे बच्चों पर भी आततायियों ने दया नहीं दिखाई।
9. बारह वर्ष के बिशन सिंह के तलवार मारकर टुकड़े कर दिए। उस मोले बच्चे का यह दोष था कि उसने जोश में आकर लुधियाना के डिप्टी कमिश्नर कोदिन की दाढ़ी पकड़ ली थी।
10. 1883 ई० में अदन की जेल में वासुदेव बलवन्त फाड़के आमरण अनशन करके शहीद हुए।
11. तीन चापेकर भाईयों दामोदर, बालकृष्ण, वासुदेव व उनके मित्र महादेव को 1897 ई० में फांसी दी गई।
संग्राम के कुछ बंदी सेनानी में भेजे गए :
1857 ई० के प्रथम स्वतन्त्रता जो अंडमान – निकोबार द्वीप समूह आत्मा राम सांतु (मुम्बई निवासी), कालू, क्रूर सिंह, कृष्ण जी जोशी, कृष्णास्या देवीदीन, महादेवन चेतन (कोल्हापुर), सांथी माऊ. बाबा जी सावंत सभी बंदी 27 नेटव, इन्फैंट्री रेजीमेंट के थे। मंगल सिंह डोगरा, डोगरा इटेलियन अण्डमान में ही बस गया। खुशहाल, गर्वदास पटेल (आनन्दवासी गांव के मुखिया) के साथ मिलकर आंदोलन किया। अंडमान में मृत्यु गोबिंद पटेल, गंजु खांडू मराठा, गोबिंद गौड चमन सिंह सुपुत्र शिव दयाल (इन्दौर निवासी) यातनाओं के कारण पागल। जय राम, शिव राम भीम, जवाहर सिंह नीमर (मध्य प्रदेश) जवाहर कुंभी पेनांग (बर्मा) में मृत्यु । जंग बहादुर सुपुत्र जगदेव, छत्रपति सितारा का भतीजा तात्या टोपे द्वारा दक्षिण में अंग्रेज़ो के विरूद्ध विद्रोह हेतु भेजा गया था। 1867 ई० में पकड़ा गया। जेल में ही देहांत। दादा माई प्रभु दास, दादू कैदी नं० 1337, दामोदर ओझा जी (हैदराबाद वासी) दातूनाथ दूलम, दूधनाथ तिवाड़ी, चौदहवी, रेजीमेंट का सिपाही, कैदी नं. 276, 23 अप्रैल, 1858 ई० को नौ साथियों के साथ भाग निकला, परन्तु आदिवासियों के हमले में घायल हो गया। उसके साथी मारे गए। आदिवासियों द्वारा उसका उपचार किया गया। स्वस्थ होने पर उन्होंने इसके साथ दो बेटियां ब्याह दी। वह लगभग एक वर्ष उनके साथ रहा। एक दिन दूधनाथ को आदिवासियों की योजना का पता चला। वे अबरद्दीन पर हमला करना चाहते थे। हमले का दुष्परिणाम, उसके सैकड़ो साथियों की मृत्यु थी, जो असहाय बेड़ियों और हथकड़ियों में जकड़े थे। वह अपनी जान की परवाह किए बिना वहां से भाग निकला और आक्रमण की सूचना ब्रिटिश अधिकारियो को दी। आदिवासियों का हमला असफल हुआ। सन् 1860 ई० में उसे मुक्त किया गया। कई लेखक उसे स्वार्थी व धोखेबाज कहते हैं और कई उसके इस साहसी कार्य की प्रशंसा करते हैं।
देसाई नारायण (कारवार वासी) देवी (नियार, म० प्र०) चौलत सिंह नाक मीमा (धौली बाउली, म०प्र०), भील, मिलाल नायक आदि को संगठित करके इसने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आवाज उठाई और तात्या टोपे के साथ ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध काम किया। 1861 ई० में वह जंगल में पकड़ा गया। नायक बोडरिक, नायक गंगा एक, नायक नारोजी लिंगो जी. नायक सोमिया जातरा, पोकरा आदि। नारायण
सरकार के विरूद्ध क्रांति की | कैदी नं० 6110 मार्च, 1858 को अन्य साथियों के साथ अंडमान पहुंचा। इसने चौथे दिन चाथम जट्टी से तैरकर भागने का प्रयास किया, परन्तु पकड़ा गया और फांसी पर चढ़ा दिया गया।
निरंजन सिंह (नदिया. बंगाल निवासी) कैदी नं० 46 ने, 14 मार्च, 1858 ई० को रॉस द्वीप में फांसी द्वारा आत्महत्या कर ली। बाबा जी भूजंग भोंसले (कोल्हापुर), बहादुर सिंह बिंदू हंगू बीरबल कुंभी की अंडमान जाते हुए पेनांग (बर्मा) में मृत्यु। बिठोवा सुपुत्र कोंडर जी मराठा। भीखा जी अंडमान में हुई।
गोखले की मृत्यु भूतिया (मुम्बई वासी)
अपराध में 8 अन्य साथियों सहित पकड़ा गया। कुल 47 वर्ष कैद, परिवार के साथ अण्डमान द्वीप में बस गया। मोहन लाल, गया (बिहार) उनके वंशज पोर्ट ब्लेयर में हैं। (विवरण अन्यत्र)
महादेव चेतन (कोल्हापुर)
शंकर कुतवार आदिवासियों द्वारा मार दिया गया। संत राम किशन कन्नोजी बहाण, आयु 16 वर्ष
रघुमान जी भोसले (मुम्बई) वियाकत राउ कैदी नं 213 श्रीधर सीता राम पण्डित
कोल्हापुर के राजा के भाई का सचिव हरि, हठी सिंह (उड़ीसा) सुपुत्र माधो सिंह जमीदार, इन्हें 1858 में मृत्यु दण्ड मिला था। हठी सिंह ने पिता की मृत्यु के बाद भी स्वतन्त्रता आंदोलन जारी रखा। 1865 ई० में पकड़ा गया। अंडमान जेल में ही मृत्यु ।
“क्रान्तिकारी लियाकत अली पड़पौते काजी नसीम अहमद ने हिमाचल सिंह (मुजफ्फर नगर, उत्तर प्रदेशों अंडमान जेल में मृत्यु । शीर्षक के अन्तगर्त मौलवी के शोध पत्र लिखा है जिस के अनुसार मौलवी का जन्म 5 अक्टूबर, 1817 ई० में प्रयाग के पास महागा में हुआ था । वह अंग्रेजी सेना में भर्ती हुए। परन्तु अनुशासन हीनता के कारण निकाल दिए गए। तत्पशचात वे अन्य क्रान्तिकारियो नाना साहिब आदि के साथ मिल गए और ३ गुप्त योजनाएं बनाई। ये देश भक्त थे। उन्होंने आजाद हिन्द सेना की शाखा का गठन किया। 1982 ई० को अंडमान में बंदी के रूप में ही उनकी महागा में मृत्यु हो गई। अन्य स्रोत के अनुसार लियाकत बादशाह बहादुर शाह द्वारा नियुक्त था। 12 जुलाई, 1859 ई० में उसकी सेना हार गई। परिवार व अन्य विश्वासपात्र साथियों के साथ गुजरात भाग गया। परन्तु वहां के नवाब ने धोखा दिया। वहां से मुम्बई पहुंचा। हज-यात्रियों के साथ बैठने वाला था कि
पकड़ा गया। सदा शिव नारायण पारूलकर को झासी के विद्रोह में भाग लेने के लिए काले पानी की सजा हुई। 1871 के कूका आंदोलन में 21 व्यक्ति काला पानी भेजे गए। पता नहीं चला कि उनका अंत कैसे हुआ।

 

पं० काशी राम गदर पार्टी के कोषाध्यक्ष को 8 मई, 1915 ई० में लाहौर में फांसी हुई। करतार सिंह सराभा को बीस वर्ष की आयु में, विष्णु गणेश पिंगले, सुरैन सिंह प्रथम, सुरैन सिंह द्वितीय, बख्शीश सिंह, जगत सिंह, हरनाम सिंह आदि को 16 नवम्बर, 1915 ई० में फांसी देकर शहीद किया गया। काला सिंह, रंगा सिंह, उत्तम सिंह को लाहौर में फांसी, पं० सोहन लाल पाठक, वसावा सिंह, बाबू हरनाम सिंह को मांडले में फांसी । सरदार गुरदित्त सिंह द्वारा ‘कामा गाता मारू’ जहाज जिसका नाम गुरु नानक जहाज’ रखा गया था। 376 यात्रियों से भरा था। कलकत्ता के बज बज बन्दरगाह पर रोक कर उनमें से कुछ यात्रियों को गोलियों से भून दिया, कुछ को फांसी और कुछ पंजाब की जेलों में भेजे गए। यह दुर्घटना 29 सितम्बर, 1914 की है। 13 अप्रैल, 1919 ई० को ‘जलियां वाला बाग’ अमृतसर में जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियों की बौछार कर दी। लगभग चार सौ लोग शहीद और बारह सौ घायल हुए। 1919 में खुशीराम ने रोल्ट एक्ट के विरूद्ध जुलूस का नेतृत्व किया। छाती पर नौ गोलियां लगी। प्रसिद्ध काकोरी केस में राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेन्द्र सिंह लहड़ी, अशफाक उल्ला खाँ को 1927 ई० में फांसी पर लटका दिया। लाला लाजपतराय साइमन कमीशन का विरोध करते हुए घायल हुए थे। 17 नवम्बर, 1928 ई० को उन्होंने प्राण त्यागे। चन्द्र शेखर आजाद ने कांकोरी केस के बाद क्रान्तिकारी दल “हिंदोस्तान सोशालिस्ट रिपब्लिक आर्मी” संगठित किया था। उन्होंने 27 फरवरी, 1931 ई० को बलिदान दिया। जतेन्द्र नाथ दास 63 दिन की भूख हड़ताल के बाद मृत्यु को प्राप्त हुए।
भगवती चरण बोहरा, 28 मई, 931 ई० को शहीद।
भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव को 23 मार्च, 1931 ई० को फिरोजपुर के पास फांसी दी गई।
बैकुण्ठ शुक्ल ने भगत सिंह आदि के विरूद्ध सरकारी गवाह फनीद्र घोष की हत्या कर दी थी। उसे मई 1931 ई० को गया (बिहार) जेल में फांसी हुई। प्रीति लता :- जन्म चिटागांव, पुलिस घेरे में आने के कारण 1932 ई० में मृत्यु ।
कान्ता लता बरूआ: भारत छोड़ो आंदोलन में 30 सितम्बर, 1942 ई० को गोली लगने से देहांत।
उधम सिंह : जलियां वाला बाग खूनी कांड का बदला लेने लिए इस योद्धा ने माइकल डायर को मार दिया। 31 जुलाई, 1941, ई० को लंदन की पैंटन जेल में फांसी।
राम कृष्ण बी० ए० :– नेता जी सुभाष को रूस ले जाते समय अफगान-रूस सीमा पर आमू नदी में डूबने से मृत्यू: बलिदान बिशन सिंह 23 नं० रसाले में बगावत, सितम्बर, 1940 ई० में सिकन्दराबाद में फांसी। 21 नं० रसाले के अजैब सिंह, साधु सिंह, गुरूचरण सिंह आदि कई सिपाहियों को फांसी। शचीन्द्र नाथ सन्याल 1945 में शहीद

भारत छोड़ो आंदोलन
यह आंदोलन देश व्यापी था। इसमें स्कूल, कालिजों के छात्र-छात्राओं, गांवों के किसानों आदि सभी ने भाग लिया। 11-12 अगस्त, 1942 को ब्रिटिश सरकार की ओर से गोलियां चलाई गई, जिसमें हजारों लोग शहीद हुए। अकेली दिल्ली में 76 लोग मरे, सौ से ऊपर गंभीर रूप से घायल हुए और लाखों लोग जेलों. में डाले गए। जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया आदि नेता भी पकड़े गए। भारत का प्रथम स्वतंत्रता युद्ध 1857 ई० में आरम्भ होकर 1942 ई० तक किसी न किसी रूप में चलता रहा। जिन योद्धाओं ने इस में भाग लिया। उनमें से बहुत तो अंग्रेजो की गोलियों के शिकार हुए। कई फांसी के तख्ते पर झूले। कइयों को काले पानी की सजा हुई।
क्योंकि सभी स्वतन्त्रता सेनानियों के नाम पते. जानना असभव है, अंडमान निकोबार द्वीप समूह 23 मार्च 1942 ई से अक्टूबर 1945 ई० तक जापान के अधिकार में रहे। ब्रिटिश अधिकारियों को ये द्वीप सौंपने से पूर्व जापानियों ने ब्रिटिश सरकार के सभी रिकार्डस, फाइले आदि नष्ट कर दिए थे।
1900 ई० से 1938 ई० तक के कुछ राजनैतिक कैदी, जिन्हें काले पानी की सजा मिली:-

 

अत्तर सिंह, अमर सिंह, दूसरे मांडले केस, 1917 ई० में भाग लिया। गदर पार्टी से सम्बन्ध, उल्हास कर दत्त, औगी राजा, विशाखा पट्टनम्, किसान आंदोलन (रम्पा) नेता अन्य साथियों के साथ काला पानी में आजीवन कारावास, करतार सिंह गदर दल से सम्बन्धित, काला सिंह, कांशी राम, किशोरी लाल नोजवान भारत सभा के सदस्य, केसर सिंह लाहौर लाहौर षडयंत्र केस में दण्ड मिला, अमर सिंह (इंजी) जेलर बेरी को थप्पड़ मारने की सजा, दो वर्ष पिंजरा बंद रहे। अर्जुन सिंह, अवनि भूषण चक्रवर्ती, अविनाश राय, भट्टाचार्य, कैदी नं० 31554, अश्विनी कुमार बोस, इन्दु भूषण राय, इन्द्र सिंह मल्ला, प्रथम लाहौर साजिश केस में आजीवन कारावास,
इन्द्र सिंह भसीन उजागर सिंह उधम सिंह उपेन्द्र
नाथ बेनर्जी, केहर सिंह, जेल यातनाओं के कारण शहीद, कृपा सिंह, दूसरे लाहौर साजिश केस में सज़ा खड़क सिंह, खुशहाल सिंह गंडा सिंह, गुज्जर सिंह, गुरदास सिंह, गुरदित्त सिंह बाबा, गदर लहर में थे।
गुरमुख सिंह, 1937 ई० भूख हड़ताल की। कामा गाता मारू के यात्री, कैदी नं० 38504, 1916-21 ई० तक सैल० जेल। 1922 ई० में मद्रास जेल से भागे, 1936 में पकड़कर पुन: सैल० जेल,
हरनाम सिंह, गेवन सिंह, गोबिंद राम
चन्द्र सिंह गढ़वाली ने पठानों पर गोली चलवाने से इंकार कर दिया था। 59 साथियों के साथ कोर्ट मार्शल। गांधी-इरविन समझौते के तहत परन्तु इस वीर ने मना कर दिया चतर सिंह (लायलपुर में अध्यापक) चन्द्र सिंह. साबुन मांगने पर मिली गाली, विरोध जताने पर पिंजरा बंद। बरामदे का एक कोना बंद करके रखा जाता था. भीतर ही. मलमूत्र, खाना सोना आदि, चनन सिंह, जगत राम पण्डित (होशियारपुर) नंदर पत्र की सम्पादक, जयदेव कपूर, महावीर सिंह का साथी था, जावद सिंह, ज्योतिषाराय चन्द्र पाल, ज्वाला सिंह बाबा, अमेरिका में आलुओं के व्यापारी, गदर पार्टी के पहले उप प्रधान, पहले लाहौर षडयंत्र केस में काला पानी। ठाकुर सिंह, लाहौर साजिश केस में सजा,
धन्वंतरी (जम्मू) नौजवान भारत सभा के सदस्य, दिल्ली बम केस में सज़ा।
नत्था सिंह, नाहर सिंह, नानी गोपाल, निधान सिंह, गदरपार्टी के नेता। भाई परमानन्द (छिब्बर) पं० परमानन्द (झांसी) प्यारा सिंह, गदर पार्टी से।
पृथ्वी सिंह आज़ाद, बसंत सिंह, गदर समाचार पत्र प्रकाशन में योगदान । बघेल सिंह, पादरी हत्या केस में दण्ड, बाज सिंह, बिशन सिंह, लाहौर साजिश केस में सजा, बिशन सिंह सुपुत्र ज्वाला सिंह सरहाली, अमृतसर। विशन सिंह सुपुत्र केहर सिंह, सरहाली, अमृतसर। विशन सिंह सुपुत्र राम सिंह, सरहाली. अमृतसर। बटुकेश्वर दत्त (भगत सिंह व चन्द्रशेखर आजाद का साथी) दो बार भूख हड़ताल की। बुड्डा सिंह, अंडमान जेल में शहीद,
मान सिंह बाबा, जेल यातनाओं के कारण मार्च 1918 ई० शहीद | कारावास में अत्याचार के विरुद्ध लड़ते रहें। मदन सिंह गदर दल के नेता महावीर सिंह, मंगल सिंह, महेन्द्र सिंह, मसतान सिंह, महाराज सिंह, मुंशा सिंह, गदर पार्टी का लोक प्रिय कवि रणधीर सिंह बाबा, राम रखा बाली, धर्मवीर, राम सरन दास तलवाड़, प्रथम लाहौर षडयन्त्र केस में सजा। रूढ़ सिंह (अत्तर सिंह) जेल में अमानवीय यातनाएं सही। रूढ़ सिंह सुपुत्र बसावा सिंह, जेल में अमानवीय यातनाएं सही। लहना सिंह बाबा सुपुत्र बुलाका सिंह लहना सिंह बाबा, लोपो की
लाल सिंह बाबा, लाल चन्द फलक लाहौर षडयंत्र केस में सजा, लाभ सिंह सुपुत्र राम सिंह
लाभ सिंह सुपुत्र बूहड सिंह, वतन सिंह, बाबा विसरण सिंह, संत, जेल में अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष | वसावा सिंह, अमृतसर, लाहौर साजिश केस में पहले फांसी का दण्ड, बाद में काला पानी ।
विठोवा सुपुत्र कोंडा जी, मराठा, 1857 के युद्ध में भाग लिया। 1867 ई० में पकड़ा गया। काला पानी भेजा गया। विभूति राय भूषण सरकार, विलायती राम सुपुत्र दौलत राम. एम. एस. शेर वुड की हत्या से सम्बन्धित, विभूति भूषण, वीरेन्द्र कुमार, वीरेन्द्र चन्द्र सेन, शचीन्द्र नाथ सन्याल, शिव सिंह जालन्धर
शिव सिंह होशियारपुर, प्रथम लाहौर केस में शेर सिंह, शिंगारा सिंह,संत सिंह, सावरकर गणेश, सावरकर विनायक, सचीन्द्रनाथ मायत्रा, सावन सिंह, सोहन सिंह बाबा (माकना) 26 वर्ष जेल काटी।

सुरेन सिंह, अंडमान में शहीद। सुरजन सिंह
सुधीर कुमार (खुलना केस) सुधीर कुमार (अलीपुर केस) सुच्चा सिंह हजारा सिंह, हरदित्त सिंह, मांडले साजिश केस में हरनाम सिंह, टुंडी लाट, गदरी कवि हरभजन सिंह प्रथम लाहौर षडयंत्र केस में।
हरि सिंह, गरी कवि व नेता, शस्त्र संभालने वाले। हृदय राम (हिमाचल) प्रथम लाहौर केस में।
हेमचन्द्र दास, दो बेटो सहित आजादी के युद्ध में शहीद। त्रैलोक्य नाथ चक्रवर्ती (1916 से 1921 तक सैलूलर जेल में)
नामधारी आंदोलन :–
गुरु राम सिंह को मांडले जेल में भेज दिया गया। लहना सिंह सुपुत्र, बुलाका सिंह लहना सिंह लोपो की लाल सिंह, तीन सेनानियों के अतिरिक्त 21 व्यक्ति काले पानी भेजे गए।
मंडी साजिश केस के अन्तर्गत मिया जबाहर सिंह, मियां सिंधु को काले पानी की सजा |
प्यारे लाल बच्छो वाली (लाहौर)
गदर पार्टी के सभी नेता पकड़ लिए गए सात को फांसी की सजा हुई- करतार सिंह सराभा, विष्णु गणेश पिंगले, जगत सिंह, हरनाम सिंह, बख्शीश सिंह, सुरेन सिंह बड़ा, सुरैन सिंह छोटा भाई परमानन्द छिल्लर, ५० परमानन्द पृथ्वी सिंह आजाद आदि कैदियों को काले पानी भेज दिया गया।

Alok Mohan

The admin, Alok Mohan, is a graduate mechanical engineer & possess following post graduate specializations:- M Tech Mechanical Engineering Production Engineering Marine engineering Aeronautical Engineering Computer Sciences Software Engineering Specialization He has authored several articles/papers, which are published in various websites & books. Studium Press India Ltd has published one of his latest contributions “Standardization of Education” as a senior author in a book along with many other famous writers of international repute. Alok Mohan has held important positions in both Govt & Private organisations as a Senior professional & as an Engineer & possess close to four decades accomplished experience. As an aeronautical engineer, he ensured accident incident free flying. As leader of indian team during early 1990s, he had successfully ensured smooth induction of Chukar III PTA with Indian navy as well as conduct of operational training. As an aeronautical engineer, he was instrumental in establishing major aircraft maintenance & repair facilities. He is a QMS, EMS & HSE consultant. He provides consultancy to business organisations for implimentation of the requirements of ISO 45001 OH & S, ISO 14001 EMS & ISO 9001 QMS, AS 9100, AS9120 Aero Space Standards. He is a qualified ISO 9001 QMS, ISO 14001 EMS, ISO 45001 OH & S Lead Auditor (CQI/IRCA recognised certification courses) & HSE Consultant. He is a qualified Zed Master Trainer & Zed Assessor. He has thorough knowledge of six sigma quality concepts & has also been awarded industry 4, certificate from the United Nations Industrial Development Organisation Knowledge Hub Training Platform  He is a Trainer, a Counselor, an Advisor and a Competent professional of cross functional exposures. He has successfully implimented requirements of various international management system standards in several organizations. He is a dedicated technocrat with expertise in Quality Assurance & Quality Control, Facility Management, General Administration, Marketing, Security, Training, Administration etc. He is a graduate mechanical engineer with specialization in aeronautical engineering. He is always eager to be involved in imparting training, implementing new ideas and improving existing processes by utilizing his vast experience.