ancient indian history

Unsung Heroes

Some Unsung Heroes of Freedom Struggle

There are many freedom fighters, who had sacrificed their lives for us, the people of India. The names of several freedom fighters had been erased from the history books of Hindu part of partitioned India, due careless attitude of the political leadership.

Some unsung heroes of the freedom struggle, whom post partitioned India, has not done justice, are given below:-

1. पृथ्वी सिंह आज़ाद

15 सितम्बर, 1892 को लालडू (निकट चण्डीगढ़) में एक राजपूत परिवार में इनका जन्म हुआ। कैलीफोर्निया में ‘गदर’ पत्र प्रकाशित हुआ। उसका विज्ञापन था “आवश्यकता है गदर पार्टी के लिए सैनिकों की कार्य क्षेत्र भारत, ईनाम शहादत या आजादी, वेतन “मौत”, पढ़कर कई भारतीय, भारत माता को स्वतन्त्र कराने के लिए जुड गए। पृथ्वी सिंह आज़ाद भी उनमें से एक थे।
पृथ्वी सिंह को छः वर्ष काले पानी की सज़ा के बाद भारत भेजा गया । एक बार जेल से भागे तो पुलिस ने पकड़ लिया। 29 नवम्बर, 1922 ई० को एक दूसरी जेल में ले जाते हुए चलती गाड़ी से छलांग लगा दी। “स्वतन्त्रता सेनानी है यह व्यक्ति, यह सोचकर किसी ने हथकडीया काट दी थी । सोलह वर्ष तक बाबा, पृथ्वी सिंह गायब रहे। स्वामी राव के नाम से माद नगर (गुजरात) में अज्ञातवास चलता रहा। वे 1931 से 1935 तक रूस में रहे। वहा से आकर गांधी जी के आश्रम में वे स्वर्ग सिधारे।
शचीन्द्र
इनका जन्म 3 जून, 1893 में बनारस में हुआ था । शचीन्द्र नाथ सान्याल के अन्य तीन भाई रविन्द्र जितेन्द्र व भूपेन्द्र सभी क्रान्तिकारी थे। रविन्द्र सबसे बड़े थे। सैनिक विद्रोह के बिना भारत स्वतन्त्र नहीं हो सकता था। फरवरी, 1915 को बनारस व फिरोजपुर छावनी में विद्रोह कराना था। करतार सिंही सराभा भी इनके साथ थे । अंग्रेजी सरकार को पहले ही पता चल गया और यह योजना असफल हो गई।
शचीन्द्र की मां कहती “जन्म देने वाली में से, भारत माँ बड़ी है” उसे स्वतंत्र कराना है । धन्य हैँ, वो मातायें ज़िन्होने वीर सपूतों
को जन्म दिया।

2. पंडित परमानन्द:-
पंडित परमानन्द का जन्म, कसकरौला गांव, झांसी में जून, 1898 ई० में हुआ। पं० परमानन्द, पर बाहर से हथियार मंगवाने, सिंगापुर, कानपुर झांसी, प्रयाग की छावनियों में बगावत फैलाने का आरोप था। 22 वर्ष की आयु में काले पानी की सजा 31 वर्ष जेलों में काटे। वे आजीवन ब्रह्मचारी थे। जेल वार्डन बेरी कैदियों को गाली दे रहा था। पं० परमानन्द ने बैरी के मुंह पर चपत जड़ दिया। नंगे शरीर पर बीस कोड़े, पीठ की चमड़ी उखड़ गई, परंतु मां के लाल ने हाय नहीं की। उनके दादा राम राखन ने 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता युद्ध में भाग लिया था।
3. भाई परमानन्द छिब्बर :
भाई परमानन्द जी का जन्म 4 नवम्बर 1876 को करियाला, जिला जेहलम (पाकिस्तान) में हुआ था। वे प्रसिद्ध बलिदानी भृगु गोत्रीय बाबा परम दास, भाई मतिदास व सतीदास के वंशज थे। उनके चचेरे भाई बाल मुकन्द को लाहौर षडयन्त्र केस में फांसी हो गई थी। इन्हें भी फांसी की सजा मिली, परन्तु ‘काले पानी में कठोर यातनापूर्ण जीवन झेलना पड़ा। फांसी की सजा के बदले काला पानी की घोषणा के समय सभी बलिदानियों की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार हुई, “ऐसा लगा जैसे, स्वर्ग की ओर जाते हुए हमें सीढ़ी से गिराकर नरक द्वार में प्रवेश करने के लिए कहा जा रहा है।
भाई परमानन्द जी डी०ए०जी० कॉलिज, लाहौर में इतिहास व अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे। वे आर्य समाजी प्रचारक भी थे। उन्होंने अपना जीवन दान किया हुआ था। आर्य समाज के प्रचार के लिए उन्हें विदेश में भी जाना पड़ा। कैलीफोर्निया में वे लाला हर दयाल के संपर्क में आए और गदर पार्टी के साथ मिल गए। दिसम्बर 1939 में भारत में वापस आये । उनके विषय में ट्रिब्यूनल ने कहा। यह व्यक्ती सबसे बड़ा अन्दोलनकारी है। दो जजों ने उन्हे मृत्यू दंड दिया, परन्तु तीसरा जज सहमत नहीं था । अत काले पानी की सजा हुई। मुख्य धरती पर सुशिक्षित कैदियों से शारीरिक श्रम वाले कार्य यथा तेल निकालने वाले कोलहू पर बैल के स्थान पर जोतना,
चक्की पीसना, चटाईयां दरिया बुनना आदि नहीं करवाते थे। परन्तु अंडमान जेल में लिखने पढ़ने का कार्य अर्द्धशिक्षितों को सोंपा जाता था और प्रोफेसरो, वकीलो. अध्यापकों से श्रम कार्य करवाया जाता और जरा भी आना-कानी या भूल होने पर नंगे शरीर पर कोड़े पड़ते। भाई जी को भी कई बार कोड़े खाने पड़े। स्वतन्त्रता सेनानियों के परिवारों को क्या-क्या कष्ट सहने पड़े थे. यह विषय बहुत दुखद है। मुसीबत में अपने भी मुंह छिपाते हैं। बच्चों को दर-दर की ठोकर खानी पड़ती है। भुक्त भोगी ही जान सकता है, दूसरे नहीं। भाई परमानन्द जी की धर्मपत्नी की वीरता की कथाएं मैंने बचपन में अपने परिवार से सुनी थी। वह एक साहसी महिला थी। वह और उनकी दो पुत्रियां क्षय रोग से चल बसी । भाई परमानन्द जी मध्य प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल डॉ० भाई महावीर जी के पिता थे।

4. वीर विनायक सावरकर

7 अक्टूबर, 1905 ई० में विनायक सावरकर ने पूना में लकड़ी पुल के पास विदेशी कपड़ों की होली जला दी। राजद्रोह के कारण उन्हें फर्गुसन कॉलिज होस्टल से निकाल दिया और दस रू० जुर्माना हुआ। 1906 ई० में उन्हें छात्रवृत्ति का फार्म भरना था। उसमें जीवन का उद्देश्य सावरकर ने लिखा, “स्वतन्त्रता प्राप्ति” मैं भारत को स्वतन्त्र कराना चाहता हूं यही मेरा सपना है
10 मई, 1907 ई० को स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम को पचास वर्ष हो गए थे। विनायक सावरकर ने इंग्लैण्ड में रह रहे भारतीयों को ‘स्वतन्त्रता संग्राम की पचासवीं वर्ष गांठ मनाने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने मंगल पाण्डे, रानी लक्ष्मी बाई, नाना साहिब, राजा कुंवर सिंह व बादशाह बहादुर शाह आदि को श्रद्धाजलि दी। सावरकर बंधु तीन भाई थे। बड़े गणेश दामोदर सावरकर का जन्म 1880 ई० में हुआ। देश भक्ति की कविता लिखने पर 1909 में उन्हें आजीवन कैद हुई। अप्रैल, 1911 ई० में उन्हें अंडमान जेल में भेज दिया गया कैदी नं० 31911 सैलूलर जेल में अमानवीय यातनाओं के कारण वे विक्षिप्त हो गए। 1921 ई० में मुख्य धरती पर उनकी वापसी हुई सबसे छोटे नारायण सावरकर थे। अहमदाबाद में लार्ड मिंटो पर बम फेंकने के कारण उन्हें भी आजीवन कारावास मिला।
विनायक दामोदर सावरकर को 50 वर्ष का कठोर दण्ड मिला। ‘काला पानी जाने से पूर्व उनकी पत्नी उन्हें मिलने आई। उस वीरांगना ने कभी सपना संजोया था, “इंग्लैण्ड से पति बैरिस्टर बनकर आएंगे। परन्तु उनके सामने हाथ-पैरों में लोहे की बेड़ियों में जकड़े देश भक्त पति खड़े थे।
अंडमान द्वीप समूह के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर उन्होंने कहा था, “ये द्वीप भारत की रक्षा के लिए नेवल बेस बन सकते है।” उनका कथन सत्य हुआ। सैलूलर जेल में विनायक सावरकर ने एक पुस्तकालय आरम्भ किया। वहां बहुत से भारतीय ग्रंथ रखे गए। जौ कैदी पढ़ नहीं सकते थे, उन्हें विनायक पढ़ कर सुनाते थे।
एक बार जेलर बैरी ने व्यंग्य कसते हुए सावरकर जी से कहा, “1960 ई० में छूटोगे। विनायक सावरकर ने उत्तर दिया, “क्या ब्रिटिश शासन तब तक रहेगा।”
वीर सावरकर अपनी पुस्तक, “द स्टोरी ऑफ माई ट्रास्पोर्टेशन फार लाइफ में जेलर बैरी के विषय में लिखते हैं. वह कहता था. “सुनो कैदियों, ब्रह्माण्ड में एक ईश्वर है और वह स्वर्ग में रहता है। | परन्तु पोर्ट ब्लेयर में दो भगवान है. एक स्वर्ग में रहने वाला और दूसरा इस धरती का, पोर्ट ब्लेयर में रहता है, वह मैं हूं। स्वर्ग का भगवान तुम्हे उस समय पुरस्कृत करेगा जब तुम स्वर्ग में जाओगे, | परन्तु पोर्ट ब्लेयर का भगवान तुम्हे यहां अभी पुरस्कृत करेगा. इसलिए अनुशासन में हो और ठीक बर्ताव करो, तुम चाहे उच्च अधिकारियों को मेरी शिकायत लगा दो. परंतु मेरा काम तो जारी रहेगा।
जेल में कैदियों की दुर्दशा के विषय में वीर सावरकर लिखते हैं, “सख्त परिश्रम, गंदा भोजन, मैले कुचैले कपड़ो की बात छोड़िए. सबसे दुखद स्थिति तब होती थी, जब कैदियों को मल-मूत्र निवृति की सुविधा नहीं मिलती थी। प्रातः दोपहर व सायंकाल को कुछ समय तय किया गया था. और समय में यदि आवश्यकता पड़ती तो शौचालय की सुविधा नहीं थी। कैदियों को सायंकाल 5-6 बजे बंद कर दिया जाता था और दूसरे दिन प्रातः 6 बजे ताला खोला जाता था। लघु शंका के लिए कोठड़ी के एक कोने में घड़ा रख दिया जाता था।
सैलूलर जेल में खतरनाक कैदियों को रखा जाता था। अत्याचारों से तंग कई कैदी आत्महत्या कर लेते थे। कई बार सामूहिक रूप से भूख हड़ताल पर बैठते, परन्तु उनकी सुनवाई न होती। कई कैदी पागल हो गए थे, ‘सावरकर के बड़े भाई गणेश सावरकर भी अत्याचारों के शिकार हो गए थे।”
जेल में विभिन्न प्रांतों से आए कैदियों की भाषा अलग-अलग थी। सावरकर ने उनके साथ हिंदी में बात करनी शुरू की।
स्टील फ्रेम जिसे टिक-टाईक कहते थे. उसके साथ कैदी को नंगा करके बांध दिया जाता था। विशेष प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा कोड़े मारे जाते थे। जिस स्थान पर कोडा लगता, चमडी उखड़ जाती. मास के लोथडे दिखाई देते थे। घाव पर लगाने के लिए औषधि भी नहीं दी जाती थी। वीर विनायक
सावरकर को इस जेल में दस वर्ष काटने पड़े थे और कई बार अपने साथियों के साथ बेंत खाने पड़े थे।
इस जेल के बाद उन्हें रत्नागिरि जेल में कई वर्ष बिताने पड़े थे । विनायक 54 वर्ष के हो चुके थे, 1927 में, 27 वर्ष की लम्बी सजा भुगतने के बाद मुकत हुए। उन्हों ने अपनी आत्मकथा जेल की दीवारों पर लिखी।
24 दिसम्बर, 1980 ई० को अण्डमान के लोगों ने विनायक सावरकर को सम्मानित किया। उनकी कोठड़ी राष्ट्रीय स्मारक के रूप में घोषित की गई।
14 जनवरी, 1961 को पुणे में सेनापति बापत की
अध्यक्षता में एक सभा हुई और वीर सावरकर को सम्मानित किया गया। सावरकर ने धन्यवाद के रूप में कहा, “अपनी सीमाओं की रक्षा करना अनिवार्य है। किसी राष्ट्र की शक्ति उसकी Fire Power में होती है। अतः Militarise the Nation. फरवरी, 1966 ई० में विनायक सावरकर जी का देहांत हो गया।
5. नानी गोपाल
नानी गोपाल सोलह वर्ष का था। उसने पुलिस अफसर की गाड़ी पर बम फेंका था। उसे चौदह वर्ष की काले पानी की सजा हुई। उसे तेल निकालने के लिए कोल्हू पर बैल की जगह जोता जाता था। छोटी आयु में किशोर के लिए यह काम जेल के नियमों के विरूद्ध था। नानी गोपाल के साथ जेल के अधिकारी जितनी क्रूरता से पेश आते, वह उतना ही ढीठ हो जाता। उसे खड़े होने के लिए कहते, वह खड़ा न होता। उसे अंधेरी कोठड़ी में बंद करते, वह भीतर ही रहता, बाहर न निकलता। जेलर उसे गालियां देता, उसे परवाह नहीं थी। वह स्नान न करता, शरीर पर मैल जम जाती, सफाई करने वाला अपने झाडू से उसका शरीर साफ करता, झाडू की सींको के निशान पड़ जाते। दिन को प्रतिदिन कोडो की मार पड़ती। सजा देने के लिए उसे रात्रि को कम्बल न दिया जाता वह नंगे फर्श पर ही पड़ा रहता। चीफ कमिश्नर उससे कहता, “इस तरह के व्यवहार से तुम समझते हो, हम तुम पर दया करेंगे, कदापि नहीं. चाहे तुम मर जाओ।” नानी गोपाल की सजा एक वर्ष और बढ़ गई, अर्थात 15 वर्ष, उसको 1925 में मुक्त होना था।
6. पं० राम रक्खा बाली (धर्मवीर):
पं० राम रक्खा बाली का जन्म गांव ससोली, जिला होशियार पुर (पंजाब) में जून, सन 1886 ई० में हुआ। उन के पिता का नाम जवाहर लाल बाली था। शिक्षा प्राप्ति के बाद वे पुलिस इंस्पैकटर भर्ती हो गए। उन की नियुक्ति मांडले (बर्मा) में हो गई। घर से विदा लेने के समय उन्होंने मातृ भूमि की कुछ मिट्टी अपनी धोती के किनारे में बांध ली। राष्ट्र भक्ति की भावना उन में कूट-कूट कर भरी थी।
मांडले में वे गदर पार्टी के जनरल सेक्रटरी व गदर पत्र के सम्पादक लाला हर दयाल के सम्पर्क में आए. और उन के साथ मिलकर भारत माता को मुक्त कराने के लिए स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। दिसम्बर, 1918 ई० को बंदी बना कर उन्हें काला पानी भेज दिया गया। बैरी ने उन्हें भी असहनीय यातनाएं दी। अन्य कैदियों के साथ उन्हें भी नंगी पीठ पर कोड़े खाने पड़े। उन का जनेऊ उतार दिया गया। उन्हें हिन्दु धर्म में अटूट आस्था थी। उन्होंने जनेऊ प्राप्ति के लिए अनशन रखा, परन्तु अधिकारियों से उन्हें अपमान ही मिला। 93 दिन के मरण व्रत के बाद जून, 1919 ई० में उनके प्राण पखेरू उड़ गए। अंत तक उन्हें जनेऊ प्राप्त नही हुआ। उन का अन्तिम संस्कार हिन्दु, रीति-रिवाज के अनुसार न करके शव को समुद्र में फेंक दिया।

7. उल्हासकर दत्त
प्रेसीडे सी: कॉलिज का छात्र था। मानिक तल्ला बम काण्ड में उसे बंदी बनाया गया। उसे 107° ज्वर था। क्रूर बेरी जेलर के आदेश से उसे धूप में रखा जाता। बेडियो में जकड़ा वह तीन दिन बेसुध रहा। होश आने पर उसे बिजली के झटके दिये जाते. आत्महत्या का प्रयास करने पर अत्याचार और बढ़ा दिये गए। हाथ बाध कर छत से लटका दिया । पागल होकर 12 वर्ष पागलखाने में व्यतीत किए । कहीं से सुना था कि स्वस्थ होकर उसने कई वर्ष परिवार में बिताये। शायद स्वतंत्रता के बाद।

8. ज्योतिष चंद्र पाल
ज्योतिष चंद्र पाल जेल की असहनिय यातनाओं से पागल हो गये थे
1924 ई० में बरहानपुर बगाल जेल में उनका देहांत हो गया अंत समय उन्हों ने परिवार के लिए संदेश छोड़ा, “यह न समझना कि मेरी आत्मा स्वर्ग में रह रही है, नहीं, यदि मेरा प्यार मेरे देश के लिए सच्चा है, तो मैं फिर जन्म लूंगा और मातृभूमि की सेवा करूंगा।”
9. इन्दु भूषण राय :
इन्दु भूषण राय पर भी बेरी की बर्बरता कम नहीं थी। उसे तेल निकालने वाले कोल्हू के आगे जोता जाता। उससे कोल्हू खींचा नहीं जा रहा था। उसने दुख व्यक्त किया। उसके गले में 15 सेर बोझ डाल दिया गया। पीठ पर भूसे का बोरा बांध दिया। उसने इन यातनाओं से बचने के लिए खिड़की की सलाखों से अपना कुर्ता बांध कर आत्महत्या कर ली।
जेलर बेरी के अत्याचारों की कथाएं सबने सुनी। जब वह इंग्लैण्ड वापस लौट रहा था, मार्ग में ही उसकी मृत्यु हो गई।
10. महावीर सिंह राठौड़ :
इनका जन्म 16 सितम्बर, 1905 ई० में जिला एटा. उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके पिता देवी सिंह थे। महावीर सिंह डी०ए०वी० कॉलिज, कानपुर के विद्यार्थी थे। जून, 1929 में पकड़े गए।
7 अक्टूबर, 1930 को सात साथियों सहित आजीवन कारावास की सजा हुई। कुछ समय बिल्लारी (दक्षिण) जेल में और फिर जनवरी, 1933 के आरम्भ में काले पानी में भेज दिए गए। वहां अनशन के कारण हालत बिगडने पर नाक से नली चढाई गई तो दूध पेट में जाकर फेफड़ो में चला गया, फेफड़े दूध से भर गए। 17 मई, 1933 को दुखद अन्त हुआ शव को समुद्र में फेंक दिया।
11. जयदेव कपूर
लाहौर षडयंत्र केस के मुकदमे में आजीवन कारावास । उन्हें 30 वर्ष का दण्ड मिला। 16 वर्षों की कठोर यातनाओं के बाद 21 फरवरी, 1946 में मुक्त हुए।

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