मौर्यवंश मौर्य वंश का प्रथम राजा चन्द्रगुप्त मौर्य था। उसने 322 ई० पूर्व से 298 ई0 पूर्व तक 24 वर्ष शासन किया । सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् उसके सेनापति सिल्यूकत ने भारत पर आक्रमण कर दिया । परन्तु वह चन्द्रगुप्त से हार गया। उसने अपनी बेटी का विवाह चन्द्रगुप्त से करके वैक्टरिया का क्षेत्र दहेज में दे दिया। अफगानिस्तान पर चन्द्रगुप्त का पहले ही अधिकार था । चन्द्रगुप्त मौर्य का गुरु मंत्री और परामर्शदाता चाणक्य था, जिसने वैष्णव धर्म के पुनरुत्थान के लिए चन्द्रगुप्त को प्रेरित किया। चन्द्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र बिम्बसार और पोते अशोक ने क्रमश: 25 और 36 वर्ष शासन किया । इनके समय वैष्णव धर्म फलाफूला। श्री राम व श्रीकृष्ण के जन्म स्थलों तथा काशी पर भव्य मन्दिरों का निर्माण हुआ। परन्तु कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध मत अपना लिया और अहिंसा को परम धर्म मानकर शस्त्र उठाने बन्द कर दिए । 187 ई0 पूर्व मौर्य शक्ति घटने लगी। इतने बड़े साम्राज्य की रक्षा हेतु जिस क्षात्र बल की आवश्यकता होती है, उसका पतन आरम्भ हो गया । मौर्यवंश दो भागों में बंट गया । एक ने साकेत को अपनी राजधानी बनाया और दूसरे ने पाटलिपुत्र को साकेत का अन्तिम राजा वृहदस्थ था। वह बहुत ही दुर्बल सिद्ध हुआ। परिणामतः यूनानी निर्भीक होकर भारत को कुचलने लगे। बृहद्रथ के कुशल सेनापति पुष्य मित्र शुंग ने भारतमाता की रक्षा का बीड़ा उठाया और यूनानियों के आक्रमणों को रोका। यूनानी शासक दिमित्रस साकेत पर विजय न पा सका तो उसने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। साकेत से यवनों को उखाड़ने के पश्चात् पुष्य मित्र यवनों के गढ़ मथुरा पर आक्रमण करना चाहता था। राजा बृहद्रथ सेनापति पुष्यमित्र से सहमत नहीं था । प्रजा ऐसे कायर राजा से दुःखी थी। सब तरफ हा हा कार मचा था। बृहद्रथ की हत्या के पश्चात् पुष्यमित्र ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ली। यवनों के हराने के बाद उत्तरी भारत पर उसका अधिकार हो गया ।