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Prithviraj Chouhan

पृथ्वी राज चौहान
पृथ्वीराज चौहान का नाम भारतीय इतिहास मे स्वर्ण अक्षरों ही लिखा हुआ है। उन्हे सनातन संस्कृति के सरंक्षण के महत्व पूर्ण योगदान के लिये जाना जाता है।
चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज एक सनातन धर्म के शासक थे । सिर्फ 11 वर्ष की उम्र मे, उन्होने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसे कई सीमाओ तक फैलाया भी था। परंतु अंत मे वे राजनीति का शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे, परंतु उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी पूरी नहीं कर पाया। पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही एक कुशल योध्दा थे, उन्होने युध्द के अनेक गुण सीखे थे उन्होने अपने बाल्य काल से ही शब्ध्भेदी बाण विद्या का अभ्यास किया था। पृथ्वी राज चौहान की माता कर्पूर देवी हैहय राजा अंचल राज की पुत्री थी। उसके पिता सोमेश्वर गुजरात में रहते थे। वहीं उसने विवाह कर लिया । 1166 ई0 में पृथ्वी राज का जन्म हुआ। कई विद्वान उसका जन्मकाल 1162-65 के मध्य में मानते हैं।’ पृथ्वी राज विजय” के अनुसार सोमेश्वर 1168-69 में पत्नी और दो बच्चों को साथ लेकर सपादलक्ष चला गया था। वहां उसने अपनी पैतृक गद्दी को संभाल लिया था। सन् 1177 में सोमेश्वर का देहान्त हो गया। पृथ्वी राज उस समय बच्चा ही था। राज्य-संचालन में उसकी माता सहायक थी। उसने कदम्ब को मुख्यमंत्री नियुक्त कर लिया था। कर्पूर देवी ने अपने पिता के विश्वास पात्र-भुवनायक मल को सेनापति बना लिया। इन दोनों के अतिरिक्त पृथ्वी राज के दरबार में योग्य अफसर थे। इन सभी ने पृथ्वी राज और उसके छोटे भाई हरिराज को युद्ध कौशल का प्रशिक्षण देकर अनुपम योद्धाओं के रूप में तैयार किया। पृथ्वी राज को गद्दी पर बैठते ही संघषों का सामना करना पड़ा था। मुहम्मद गौरी 1178 ई० में मुलतान के मार्ग से गुजरात में आ घुसा था। उसने पृथ्वी राज के पास बातचीत के लिए दूत भेजें। चौहान राजा के साथ मुहम्मद गोरी की बात सफल नहीं हुई। गोरी ने मारवाड़ पहुंचकर सोमेश्वर मंदिर को भ्रष्ट कर दिया। पृथ्वी राज गौरी के साथ युद्ध के लिए तैयार था. परन्तु उसके कुशल सेनापति ने उसे मना कर दिया। उसी समय पृथ्वी राज को सन्देश मिला कि गौरी आबू की तलहटी के राजा चालूक्य द्वितीय से हार गया है। पृथ्वी राज को उस समय अपने चाचा विग्रह राज के बेटे नागार्जुन के साथ भी लड़ना पड़ा। सन् 1182 ई० में मुहम्मद गौरी पश्चिमी पंजाब का बहुत क्षेत्र जीतने के पश्चात् ‘तबरेहिन्द’ (सरहिन्द, पटियाला आदि) पहुंचा। यह क्षेत्र पृथ्वी राज की सीमा के साथ लगता था। दिल्ली के गवर्नर चन्द्र राज सुपुत्र गोविन्द राज ने गौरी के आक्रमण और राजपूतों की दुर्दशा का वर्णन पृथ्वी राज के सामने किया। पृथ्वी राज हिंदुत्व की रक्षा के लिए गोरी के साथ युद्ध करने के लिए चल पड़ा। तरावड़ी (कुरुक्षेत्र के पास) घमासान युद्ध हुआ। गौरी हार गया। पृथ्वी राज मुहम्मद गोरी को केंद्र कर के मरवा भी सकता था। परन्तु उसने उदारता दिखाते हुए उसे मुक्त कर दियां तबरेहिन्द के किले पर मलिक जिया-उद्-दीन ने 13 मास तक अपनी स्थिति बनाई रखीं। अन्त में पृथ्वी राज ने विजय पा ली। पंजाब पर चौहानों की प्रभुसत्ता कायम हो गई।
पृथ्वी राज के हाथ से पराजित का बदला लेने के लिए मुहम्मद गौरी ने गजनी में एक विशाल सेना संगठित की। वह 1192 ई० में पेशावर और मुलतान के रास्ते लाहौर पहुंचा। उसने रुकनूदीन हमजा को संदेश देकर पृथ्वीराज के पास भेजा कि वह इस्लाम और गौरी की प्रभुसत्ता स्वीकार कर ले। परन्तु पृथ्वी राज ने उसके साथ लोहा लेने की ठान ली। उसने अपनी विशाल सेना तैयार की। एक सौ पचास हिन्दू राजा पृथ्वी राज के साथ कंधा से कधा मिलाकर धर्म युद्ध के लिए तैयार हो गए। सभी राजाओं ने संकल्प किया कि मुस्लिम बादशाह को पराजित करना है या लड़ते-2 शहीद हो जाना है, परन्तु इस्लाम स्वीकार नहीं करना। भयंकर युद्ध हुआ। मुहम्मद गौरी ने धोखे और चतुराई से यह युद्ध जीत लिया। गोविन्द राज व अन्य कई राजे तथा एक लाख हिन्दू सैनिक धर्म की बलिवेदी पर चढ़ गए। जीतने के पश्चात् गौरी हांसी, सुरस्ती होता हुआ हुआ अजमेर पहुंचा। नगर के मन्दिर तोड़ कर मस्जिदें बना दी गई। इस्लामिक मदरसे आरम्भ कर दिए। पृथ्वी राज का यातनाएँ देकर अन्त किया गया। मुस्लिम इतिहासकार सदैव हिन्दू योद्धाओं को ही दोष देते हैं। जैसे पृथ्वी राज सोया हुआ था उसे नींद प्यारी थी। जब उसको पकड़ा। मु० गौरी ने उसका राज्य लौटा देना था, परन्तु उसके महल में मुसलमानों के अपमान जनक चित्र देखकर सुलतान को गुस्सा आ गया। इसलिए उसकी हत्या कर दी आदि। उनकी ऐसी मनधडन्त बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। वास्तव में पृथ्वी राज एक कुशल जनरल था, परन्तु राजनैतिक रूप से दूरदर्शी नहीं था। पहले युद्ध में ही यदि वह गौरी को खत्म कर देता परिणाम और तरह का होता। उस समय गोरी पूरी तरह से अपनी प्रभुसत्ता स्थापित नहीं कर सका था।
श्री रिजवान सलीम 28 दिसम्बर 1997 के हिन्दुस्तान टाइम्स’ में “आक्रमणकारियों ने क्या किया शीर्षक के अन्तर्गत लिखता है, मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हिन्दुओं के असंख्य मन्दिरों को तोड़ा। हिन्दू राजाओं के महल व किले तोडे। हिन्दू पुरुषों को मारा। हिन्दू महिलाओं को अपमानित किया। शिक्षित और अशिक्षित सभी लोग इस तथ्य को जानते हैं। आठवीं से ग्यारहवीं शताब्दी में भारत विश्व का सब से धनी क्षेत्र था। लेखक लिखता है. मैंने कई मस्जिदों में मन्दिरों के पत्थर और स्तम्भ
लगे देखे है यथा जामा मस्जिद, अहमदशाह मस्जिद अहमदाबाद में, कोटजूनागढ़ की मस्जिद भोपाल के पास विदिशा, अजमेर की दरगाह के पास अधाई दीन का झोपड़ा या (अढ़ाई दिन का झोपड़ा) इन्दौर के निकट धार, मस्जिद भोजशाला आदि। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हिन्दुओं के धार्मिक, पवित्र स्थल नष्ट किए। हिन्दुओं की सभ्यता-संस्कृति और खुशहाली को नष्ट किया। इतिहास गवाह है। हिन्दू तीन मन्दिर -मथुरा, काशी, अयोध्या मांग रहे हैं। एक हजार वर्ष से चली आ रही लम्बे संघर्ष की यह कहानी है। वे अपनी संस्कृति और धार्मिक विरासत को पुनः प्राप्त करना चाहते हैं।”
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