ancient indian history

Bhai Sukha Singh

भाई सुक्खा सिंह

भाई कान्ह सिंह के अनुसार सुक्खा सिंह का जन्म सन् 1768 में हुआ था। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहान्त हो गया। उनकी | प्रसिद्ध रचना ‘गुरू विलास’ है। यह वीर काव्य है। इसमें गुरू गोबिन्द सिंह जी का जीवन वृतान्त दिया गया है। इस ग्रन्थ की रचना आनन्दपुर साहब केशगढ़ में की गई थी। इस ग्रन्थ में पौराणिक अवतारों की तरह ही दशम गुरू जी कथा है। जब धरती मलेच्छों के कारण दुखी हो गई, गो हत्याये होने लगी। पृथ्वी ने भगवान से प्रार्थना की, प्रभु ने धरती माता के कष्ट निवारण के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी को भेजा। उदाहरण :

नीत अनीत निहार मलेच्छन। दुखत भई धरनी सम सारी लोप भएँ सब धर्मन के गुन जग्ग सु पुनं जु दान अपारी। ईद चली बकरीद निवाज सु गोदध होत सभै घर बारी।।

दुखद भई धरनी जब ही। जग नायक पै इह भाति पुकारी।। आकुल व्याकुल है निज मातर। रोवत थी बहुत पाप निहारी।। होउ न आतुर धीर धरो। निज धारत संत अनन्तावतारी।। जो निज रिदे विचार के, दीन बन्धु करतार।
दसम श्री गुरू पठयो, मात लोक निराधार।।
‘गुरू विलास’ में गुरू जी द्वारा विभिन्न तीर्थो के दर्शन करने के विषय में भी लिखा है। गुरू गोबिन्द जी ने गोकुल, वृन्दावन, मथुरा की यात्रा में उन सभी स्थानों को देखा, जहां उन्होंने अनेक लीलाएं की थी। यथा पूतना वध, काली वध, कंस वध आदि।
लेखक ने गुरु जी की माता का कौसल्या के समान और गुरू जी को राम, कृष्ण और शिव के समान माना है। तथा सोढ़ी वंश को सूर्य वंश कहा है।

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