ancient indian history

Rishi Dronacharya

द्रोणाचार्य :

द्रोणाचार्य भारद्वाज के पुत्र थे ये भारद्वाज इक्ष्वाकु वंश की 91वीं पीढ़ी के राजा सुसंधि के समकालीन थे। द्रोण की पत्नी कृपी कृपाचार्य की बहिन थी। इन दोनों का पालन पोषण राजा शान्तनु ने किया था। गौतम की पुत्री होने के कारण कृपी को गौतमी भी कहते थें।  द्रोणाचार्य ने अपने पिता से वेदाध्ययन किया तथा चाचा अग्निवेश से आग्नेयास्त्रों का प्रशिक्षण लिया। अन्य अस्त्र-शस्त्र उन्होंने परशुराम से सीखे। परशुराम ने उन्हें ‘ब्रह्मास्त्र’ भी प्रदान किया।  द्रोण ने अपने पिता के आश्रम में चार वेदों और शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की। द्रोण के साथ-साथ प्रशात नामक राजा का पुत्र द्रुपद भी शिक्षा प्राप्त कर रहा था और दोनों अच्छे मित्र बन गए।

  एक बार द्रोण ने परशुराम से अपने हथियार दान करने का अनुरोध किया। इस पर परशुराम ने कहा, “बेटा! तुम देर से आए हो, मैंने अपना सब कुछ ब्राह्मणों को दान कर दिया है। अब मेरे पास कुछ ही हथियार बचे हैं। तुम चाहो तो मैं तुम्हें दे सकता हूं। द्रोण यही चाहते थे, इसलिए उन्होंने कहा , “हे गुरुदेव ! आपके अस्त्र-शस्त्र पाकर मुझे बहुत खुशी होगी, लेकिन आपको मुझे शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण देना होगा और मुझे विधि-विधानों से भी अवगत कराना होगा।” वे परशुराम के शिष्य बन गए। शिक्षा प्राप्त करने के बाद द्रोण का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ । कृपी का एक पुत्र था जिसका नाम अश्वत्थामा था। द्रोणाचार्य ब्रह्मास्त्र का उपयोग जानता था, जिसके उपयोग की विधि उन्होंने अपने पुत्र अश्वत्थामा को भी सिखाई। द्रोणाचार्य अत्यन्त निर्धन थे। परन्तु किसी के आगे हाथ नहीं पसारते थे। एक दिन उनका बेटा अश्वत्थामा दूध के लिए हठ करने लगा। मां ने उसे जौ का आटा पानी में घोल कर पिलायां बच्चा तो सन्तुष्ट हो गया, परन्तु पिता को अपनी दरिद्रता पर बहुत ग्लानि हुई। वे अपने सहपाठी पांचालराज द्रुपद के पास गए। दुपद पर उन्हें बहुत आशा थी। अध् ययनकाल में उन दोनों में बड़ी घनिष्ठता थी। परन्तु दुपद राज्य पद पाकर बड़ा घमण्डी हो गया था। उसने यह कहकर दुत्कार दिया कि मित्रता बराबर के व्यक्तियों में होती है। राजा और भिखारी ब्राह्मण के बीच कैसी मित्रता ? अपमानित द्रोणाचार्य हस्तिनापुर में अपने साले कृपाचार्य के पास गए। एक दिन वे नगर के बाहर धूम रहे थे। एक स्थान पर कौरव-पाण्डव बच्चे खेल रहे थे। उनकी गेंद कुएं में गिर गई। द्रोण ने गेंद को बींघ कर तीर पर तीर मारते हुए कुएं की मेंढ तक एक कड़ी बना दी। इस तरह उन्होंनें गेंद निकाल कर बच्चों को दे दिया। बच्चों ने यह घटना भीष्म पितामह को सुनाई। पितामह बच्चों के लिए एक सुशिक्षित गुरु की खोज में थे। उन्होंने द्रोणाचार्य को बच्चों का शिक्षक नियुक्त कर दिया तथा गुरुग्राम (आधुनिक गुड़गांव) का इलाका उन्हें भरण-पोषण के लिए दिया। धनुर्वेदाचार्य के रूप में उनका यश फैलता गया; और देश-विदेश के अन्य राजकुमार भी उनसे शिक्षा ग्रहण के लिए आने लगे। वह शस्त्र विद्या केवल राजकुमारों को ही देते थे। इसीलिए उन्होंने भील युवक को अस्त्र-शस्त्र विद्या सिखलाने से इन्कार कर दिया था। वह द्रोण की मिट्टी की प्रतिमा को गुरु मानकर अभ्यास करने लगा। तत्कालीन परिस्थितियों से बाध्य गुरु द्रोण नहीं चाहते थे कि एक साधारण युवक राजकुमारों जैसा प्रशिक्षण प्राप्त कर ले, जो राज्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो। उनकी राज्यभक्ति ने उन्हें घृणित कार्य करने पर विवश किया और उन्होंने भील युवक के दाहिने हाथ का अगूंठा गुरू दक्षिणा में ले लिया। 

अर्जुन से गुरु द्रोण का विशेष स्नेह था। एक बार उन्हें नदी में एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया था। उनके सभी शिष्य भाग गए, परन्तु अर्जुन ने अतीव साहस का प्रदर्शन कर उन्हें मुक्त करवाया था। 

दीक्षा समाप्त होने पर द्रोण ने कौरव-पाण्डव राजकुमारों को गुरु-दक्षिणा में द्रुपद को कैद करके पेश करने के आज्ञा दी। अर्जुन के नेतृत्व में उन्होंने द्रुपद को परास्त करके गुरु द्रोण के सामने ला खड़ा किया। तब द्रोण ने द्रुपद से कहा, “मैं तुम से मित्रता चाहता हूं, अतः दक्षिण पांचाल का आधा राज्य 

लौटा देता हूं, ताकि तुम बराबर रहकर मित्र बन सको।” महाभारत युद्ध से पूर्व द्रोणाचार्य ने कौरवों को पाण्डवों का भाग लौटाने का परामर्श दिया, परन्तु उनकी अवहेलना हुई। तथापि युद्ध में उन्होंने कौरवों का साथ दिया युद्ध के दसवें दिन भीष्म के घायल होने के पश्चात् उन्हें सेनापति बनाया गया उनके ध्वज पर कृष्ण अर्जुन व कमण्डल का चिन्ह था। उस उन्होंने शंख, समय उनकी आयु लगभग 85 वर्ष की थी। वसुदान, विराट तथा द्रुपद का बंध किया पाण्डवों ने उनका धोखे से वध कर दिया। भीम ने अश्वत्थामा नामक हाथी को मार कर शोर मचा दिया कि उसने अश्वत्थामा का वध कर दिया है। सत्यवादी युधिष्ठिर के मुख से सुने बिना, द्रोण विश्वास करने को तैयार नहीं थे। युधिष्ठिर ने भी गोलमाल शब्दों में इस समाचार की पुष्टि कर दी। विक्षिप्त द्रोण हथियार छोड़कर बैठ गये। इस अवस्था में द्रुपद पुत्र धृष्टद्युमन ने उनका सिर काट दिया। गुरू द्रोणाचार्य इन्द्रिय-संयम तथा तपस्या के कारण समाज में अत्यधिक सम्मानित थे। युद्धविद्या में वे परशुराम जामदग्न्य जैसे ही प्रवीण थे। परन्तु सेवावृत्ति होने के कारण उन जैसे स्वाभिमानी सिद्ध न हुए वेतनभोगी होने के कारण उन्हें कौरवों का साथ देना पड़ा। अश्वत्थामा :

सात चिरंजीवियों में अश्वत्थामा का नाम भी है। द्रोण पुत्र होने के कारण इसे द्रोणि और द्रोणायन भी कहते हैं। यह रूद्र के अंश से उत्पन्न हुआ था। अतः क्रोधी और तेजस्वी था। जन्म लेते ही यह अश्व के समान हिनहिनाया जिससे तीनों लोक कंपित हो गए। इसलिए इसका नाम अश्वत्थामा पड़ा। पाण्डव द्रोण के विशेष स्नेह-पात्र थे, इसलिए अश्वत्थामा का भी उनसे अत्यन्त सौहार्द था। तथापि कौरव-पाण्डव युद्ध में उसे कौरवों का साथ देना पड़ा। पिता के छद्म वध से पाण्डव उसके कोप भाजन हो गए। 

 

English Translation.

Dronacharya:

Dronacharya was the son of Bhardwaj. This Bhardwaj was a contemporary of King Susandhi of the 91st generation of the Ikshvaku dynasty. Drona’s wife Kripi was the sister of Kripacharya. Both of them were brought up by King Shantanu. Being the daughter of Gautam, Kripi was also called Gautami. Dronacharya studied Vedas from his father and took training in firearms from uncle Agnivesh. He learnt other weapons from Parshuram. Parshuram also provided him with ‘Brahmastra’.

Drona got his education on four Vedas and weapons at his father’s hermitage. Along with Drona, Drupada, the son of a king named Prashat, was also getting education and both of them became good friends. 

 Once Drona  requested Parshuram to donate his weapons. On this Parshuram said, “Son! You have come late, I have already donated everything I own to the brahmins. Now I have only few weapons left. If you want, I can give you. This is what Drona wanted, so he said, “O Gurudev! I will be very happy to receive your weapons, but you will have to give me training to use the weapons and also apprise me about the rules and regulations.” He  became a disciple of Parshuram. After getting education, Drona got married to Kripacharya’s sister Kripi. Kripi had a son whose name was Ashwatthama. became the important character of  Dronacharya knew the use of Brahmastra, the method of using which he also taught his son Ashwatthama.

Dronacharya was very poor. But he did not extend his hand to anyone. One day his son Ashwatthama started insisting for milk. The mother gave him barley flour dissolved in water and the child was satisfied, but the father felt very guilty for his poverty. He went to his classmate Panchalraj Drupada. He had a lot of hope on Drupad. There was a lot of closeness between them both during their studies. But Drupad had become very proud after getting the state post. He rebuked saying that friendship is between equal persons. What kind of friendship between the king and the beggar Brahmin? Humiliated Dronacharya went to his brother-in-law Kripacharya in Hastinapura. One day he was roaming outside the city. Kaurav-Pandav children were playing at one place. His ball fell into the well. Drona tied the ball and shot arrow after arrow and made a link to the ball. In this way he took out the ball and gave it to the children. The children narrated this incident to Bhishma Pitamah. The grandfather was in search of a well-educated teacher for the children. He appointed Dronacharya as the teacher of the children and gave him the area of Gurugram (modern Gurgaon) for his maintenance. His fame as Dhanur-vedacharya spread. And other princes of the country and abroad also started coming to him for education. He used to give weapon education, only to the princes. That’s why once, he refused to teach the art of weapons, to a Bheel youth namely Eklavya. Eklavya started practicing, while using a  clay idol of Drona, as his guru. Guru Drona, bound by the circumstances of the time, did not want that ordinary youth should get training like princes, which would prove to be harmful for the state. His patriotism forced him to do a heinous act and he took the thumb of the Bhil youth’s right hand as Guru Dakshina.

Guru Drona had a special affection for Arjuna. Once he was caught by a crocodile in the river. All his disciples ran away, but Arjuna showed extreme courage and freed him.

After the training period of the princes was over, Drona ordered the Kaurava-Pandava princes to present Drupada, to him, as Guru-Dakshina. Under the leadership of Arjuna, they defeated Drupada and brought him in front of Guru Drona. Then Drona said to Drupada, “I want friendship with you, so I offer you, half the kingdom of South Panchal. Before the Mahabharata war, Dronacharya had advised the Kauravas to return the Pandavas’ share, but they ignored him. However, during the war, Dronacharya supported the Kauravas, and took over command, when Bhishma was injured on the tenth day of the war. After he was made the commander-in-chief, his flag had the symbol of Krishna, Arjuna, and Kamandal. At that time, he was about 85 years old. The Pandavas tied Vasudan, Virat, and Drupad and killed them by deceit. Bhima killed Ashwatthama, an elephant namely Ashwatthama, and made a noise that he had killed Ashwatthama. Without hearing from the mouth of the truthful Yudhishthira, Drona was not ready to believe. Yudhishthira also confirmed the news in broken words. He sat down. In this state, Drupada’s son Dhrishtadyuman cut off his head.

 Guru Dronacharya was highly respected in society because of his sense-restraint and austerity. He was as proficient in warfare as Parshuram Jamadagnya. being salaried. He had to support the Kauravas. 

Ashwatthama’s name is also among the seven Chiranjeevis. Being Drona’s son, he is also called Droni and Dronayan. He was born from a part of Rudra.  As soon as he was born, it neighed like a horse, due to which all the three worlds were shaken. That’s why he was named Ashwatthama. Pandavas had special affection for Drona, that’s why Ashwatthama also had great relations with them. However, he had to support the Kauravas in the Kaurava-Pandava war. Due to the fake killing of the father, he was very angry with pandavas.

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